सुल्तानपुर कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता स्व. त्रिवेणी कनोजिया (नेता) जी के सातवीं पूर्णतिथि पर मुंबई भाजपा नेता मंगेश कनोजिया ने नम आंखों से दिए श्रद्धांजलि | Khabare Purvanchal

मुंबई : जिनकी गोद में बड़ा हुआ ,जिसने मेरी 4वर्ष की अवस्था में मुझे नेतवा नाम दिए ,मेरे नाना जी सुल्तानपुर कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता स्व. त्रिवेणी कनोजिया (प्रधान) जी के सातवीं पूर्णतिथि पर शत शत नमन करता हूँ 
नाना जी कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया करते थे , जिले के कई सम्मानित , बाहुबली , वा राजनीतिक लोग नाना जी का बहुत सम्मान करते थे , आज भी जब मैं पुराने लोगों से मिलता हूँ वह हमारे नाना जी की बाते किया करते हैं, जो मुझे उनकी बातें गौरवान्वित करती है , हमारा विधानसभा कादीपुर हैं सुरक्षित सीट हैं , जिसकी वजह से परिवार या समाज के कई सदस्य अगल अलग पार्टियों से विधानसभा चुनाव लड़े पर नाना जी सबको आशीर्वाद तो देते थे पर वोट सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी को ही देते थे , नाना जी का कहना था हमारी पार्टी मजदूरों, किसान और युवा तारों की हैं जिसकी वजह से मेरे पार्टी का चुनाव निशान हसिया, हथौड़ा, तारा हैं , वह कहते थे मेरा वोट मैं सिर्फ अपनी पार्टी या , पार्टी के साथ जो गठबंधन में चुनाव लड़ेगा उसी को दूँगा , बाकी परिवार के सदस्य की अपनी मर्जी हैं , नाना जी का गांव बाँगरकला शहाबुद्दीनपुर हैं गांव में एक विशाल हनुमान मंदिर भी है जहाँ नाना जी अपने मित्र मंडळी के साथ चिलम पर राजनीतिक चर्चा करते थे , नाना जी को गांजा पीना बहुत अच्छा लगता था , नाना जी खुद के लिए गांजा की खेती भी करते थे , 
नाना जी के साथ मैं मंदिर जाया करता था , मुझे बचपन से ही राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी थी इस लिए मुझे बहुत आनंद महसूस होता था , जब नाना जी और उनकी मंडळी को चिलम पिना होता था वह मुझे बहका फुसलाकर वहाँ से भगा देते थे , खुशी की बात यह हैं कि नाना जी के मित्र मंडळी में सभी पार्टी के लोग शामिल होते थे , सब लोग अपनी अपनी पार्टी की तारीफ करते थे और खूब नोक झोंक भी होती थी , पर गांव के ही एक मामा जी थे जो विकलांग थे , उनकी मंदिर के बगल में एक गुमटी थी जो चाय ,वह बच्चों के लिए खाद्यपदार्थ भी बेचा करते थे , मामा जी के मीठी गोली और 1रुपये में 16 बिस्किट नाना जी दिलाते थे , मामा जी के कुल्लड़ की चाय पर नोक झोंक समाप्त भी हो जाती थी , संध्या के समय हँसी ठहाते के साथ सभी अपने घर की तरफ निकल जाते थे बहुत ही सुहाना सफर रहा करता था, हम गर्मी की छुट्टी का इंतजार भी किया करते थे , सर्दी के मौसम में नाना जी का कराह गरम कर गुड़ बनाना , और हम सभी परिवार के छोटे बच्चों का चिंगा , और गुड़ निकालने के बाद जो किनारे में गुड़ लगा रहता था पानी डाल कर कराह को साफ कर जो रस निकलता था उसे ओल्टा करते थे , ओल्टा पीने के लिए लाइन में खड़ा होना , मैं परिवार में तभी छोटा और दुलारा था , मम्मी परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी , जिससे उसका फायदा मुझे खूब मिलता था , सिर्फ रोने का नाटक करने की देरी थी बाकी सब मिल जाया करता था , सुबह जल्दी उठ कर खेत में जाना और गन्ने के रश का आनंद लेना , नाना जी का एक बाग भी था जो पारिवारिक विवादित था , कुदरत का कैसा इंसाफ की पेड़ से एक आम भी गिरे तो उसके 4 हिस्से होते थे , नाना जी के बाग में निब्बू , आम , कटहल और बड़हल के पेड़ थे जब पेड़ से कोई फल गिरता उसका चार हिस्सा किया जाता था , मुझे बचपन में वह बातें बहुत तकलीफ देती थी कई बार मैं मम्मी से पूछा करता था कि पेड़ से दुश्मनी कैसी , मम्मी बात को टाल देती थी , पर मैं तो बचपन से ही अपने जिद के लिए जाना जाता था , जो मन में ठान लिया वह करना है , मैं अपने भाई अमित (मौसी के बेटे ) के साथ बाग में आम तोड़ने का की बात कही , गर्मी का मौसम था सब दलानी में सोए थे , हम सभी भाई बहन लोकसंगीत सुन रहे थे , मैं अपने भाई अमित के साथ बाग में गया और पत्थर पेड़ में मारा चारों तरफ से गालियों की बौछार होने लगी , मुझे पूरा विश्वास हो चुका था आज मेरी कुटाई हो के रहेगी , परिवार में विवाद बढ़ गया जब सबको पता चला कि पत्थर मैं मारा तो सभीलोग शांत हुए , पर परिवार की कुछ महिलाए धीमी गति से मुझे अशब्द बोल रही थी , तभी रामजीत मामा जी निकले जो गांव के प्रधान भी रह चुके हैं जिन्हें लोग चौधरी के नाम से पुकारे थे , वह गाली देने वाले पर बहुत गुस्सा हुए और उस दिन फरमान जारी कर दिया गया मंगेश , अमित कुछ दिन के लिए आए हैं और यह पूरे परिवार के भांजे हैं हमारे परिवार में भांजे को ब्राह्मण का दर्जा दिया जाता हैं , आज के बाद कोई भी भांजों को नहीं बोलेगा परिवार के सभी बेटी , बहन के बच्चों के लिए बाग में कोई रोक नहीं नहीं , कुछ समय बाद विवाद खत्म हुआ लेकिन मेरी मम्मी ने खूब कुटाई की नाना जी रात को आए उनको पता चला वह गुस्सा हुए पर लोगों ने समझा कर उनको शांत कर दिया , नाना जी का आशीर्वाद और प्यार आज भी मैं महसूस करता हूँ बहुत याद भी करता हूँ , शायद नाना जी का साया ही हैं जो मुझे यहाँ तक सामाजिक और राजनीतिक कार्यो में आनंद महसूस करती हैं , लगता हैं अब जैसे सब खत्म हो गया , नाना जी का गांव अब वीरान सा लगने लगा , मुझे कई वर्ष हो गए अपने नाना जी के गांव गए , पर यादें आज भी दिल में समाई हुई हैं , मैं पुनः नाना जी को याद कर उनको नमन करता हूँ , नाना जी आप हमेशा अपना आशिर्वाद मुझे देते रहना

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