मुंबई : साहित्यिक,सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के तत्वावधान में विगत दो वर्षों से कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रही है।विभिन्न विषयों को लेकर व्याख्यान,साहित्य के लेखन में उपयुक्त विधा,चित्रांकन, काव्यगोष्ठी, कवि सम्मेलन व मुशायरा आदि करती चली आ रही है।इसी श्रृंखला की कड़ी में ज्वलंत विषय "किन्नर विमर्श और सामाजिक न्याय" पर व्याख्यान राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के पटल पर रविवार 20 जून 2021 को रखा गया,जो श्रोताओं और साहित्यकारों हेतु उत्कृष्ट विषय था।व्याख्यान के लिए आमंत्रित वरिष्ठ साहित्यकार आद० डॉ. महात्मा पाण्डेय जी के साथ संस्था के राष्ट्रीय संयोजक आद० संजय द्विवेदी जी ने वार्ता किया।
आदरणीय डॉ. महात्मा पाण्डेय ठाणे जिला के कल्याण शहर मुम्बई (महाराष्ट्र) में रहते हैं, आपकी शिक्षा B.A, M.A., M.Phil., P.hd., UGC NET हुई है।आप प्रज्ञा-सूर्य गौरव सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।संप्रति में आप सहायक प्रोफेसर हिन्दी विभाग, साठे महाविधालय, मुम्बई में कार्यरत हैं।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाें में अभिपत्र वाचन,आवर्तन त्रैमासिक पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य,निरुप्रह त्रैमासिक पत्रिका के परामर्श मंडल में शामिल, अर्धवार्षिक पत्रिका ग्रामर्शिका के संरक्षक मंडल के सदस्य हैं| आप एक शिक्षक के साथ साथ एक सुप्रसिद्ध कवि भी हैं,आप विभिन्न सम्मानों से सम्मानित हैं।डाॅ पाण्डेय के साथ संचालन करते हुए संजय द्विवेदी ने पूछा कि किन्नरो का साहित्य और समाज से क्या संबंध रहा है।
पाण्डेय जी ने बताया कि किन्नरो को आज से वर्षों पूर्व राज दरबारों में एक सम्मानित स्थान था,जो दरबार में मनोरंजन करते थे और राजा उन्हें मुद्रा देकर खुश करते थे।किन्नरो का स्थान आज के रुढिवादी विचारधारा ने समाप्त कर दिया है, किन्तु ऐसा नहीं होना चाहिए था।हम जैसे सामान्य मनुष्य की तरह उन्हें भी सम्मान देना चाहिए था किन्तु कहीं ना कहीं हम आप दोषी हैं।जिस घर में वे पैदा हुए उनके पिता ने उन्हें अपूर्ण मनुष्य समझ घर से बाहर कर दिया,उनका पालन-पोषण कहीं और ने किया अथवा पिता ने हेय दृष्टि से उसकी इच्छाओं को पूर्ण नहीं किया,अतएव उन्होंने अपनी इच्छा पूर्ति हेतु गलत रास्ते चुन लिए।किन्नर समाज दो तरह से होते हैं,ऐसा उन्होंने बताया।एक वास्तविक किन्नर जो समाज के साथ-साथ चलने की नकल करते हुए,शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर समाज में अपना स्थान कायम करते हैं और सम्मान के साथ जीवन यापन करते हैं, दूसरे नकली किन्नर होते हैं जो समाज के विभिन्न व्यक्तियों,बच्चों के साथ अपनी जिजीविषा चलाने हेतु अनैतिक कार्य,अनैतिक संबंध बनाते हैं।अंत में उन्होंने कहा कि कहीं ना कहीं प्रशासन की कमी है,उन्हें भी एक स्थान देना चाहिए और उनके सुधार के लिए एक फंड देना चाहिए ताकि वे अनैतिक कार्यों को करने के बजाय शिक्षित बन समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले।उन्होंने यह भी बताया कि आज साहित्य जगत में कुछ साहित्यकारों ने उन पर अपनी लेखनी चलाई है,उन्होंने निवेदन करते हुए साहित्यकार,पत्रकार बंधुओं से कहा कि आप ऐसे समाज से बहिष्कृत व्यक्ति पर कलम चलाइये और समाज में न्याय दिलाने का कार्य कीजिए। उक्त व्याख्यान का आयोजन एवं संयोजन राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ" के संस्थापक रामस्वरूप प्रीतम (श्रावस्तवी), अध्यक्ष अनिल कुमार राही (मुंबई), संयोजक संजय द्विवेदी (कल्याण- महाराष्ट्र),सचिव धीरेन्द्र वर्मा धीर(लखीमपुर खीरी), संरक्षक दिवाकर चंद्र त्रिपाठी "रसिक" (छत्तीसगढ़) एवं मीडिया प्रभारी विनय शर्मा "दीप" (ठाणे-महाराष्ट्र),उपाध्यक्ष सत्यदेव विजय (मुंबई),कोषाध्यक्ष प्रमिला मेहरा किरण,उपसचिव प्रियंका गुप्ता भोर के सहयोग से संपन्न हुआ।अंत में संस्था द्वारा आमंत्रित व्याख्याता आदरणीय डाॅक्टर महात्मा पाण्डेय को सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया तथा व्याख्यान के कार्यक्रम का समापन किया गया।
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