नव साहित्य कुंभ संस्था की गतिविधियों पर विचार गोष्ठी संपन्न | Khabare Purvanchal

मुंबई:साहित्यिक,सामाजिक,आध्यात्मिक,सांस्कृतिक संस्था राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के संरक्षक दिवाकर चंद्र त्रिपाठी की अध्यक्षता एवं कवि विनय शर्मा दीप के संचालन,संयोजन में साहित्यिक पटल राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के प्रचार-प्रसार,कार्यप्रणाली,आपसी सहयोग,आपसी तालमेल जैसी
साहित्यिक गतिविधियों को लेकर शनिवार दिनांक 17 जुलाई 2021 को रात्रि 8 बजे से सभी पदाधिकारियों की उपस्थिति में विचार-विमर्श का आदान-प्रदान हुआ तत्पश्चात सभी ने एक-एक रचनाएँ पढीं।उक्त वर्चुअल गूगल मीट के माध्यम से संगोष्ठी में प्रीतम श्रावस्तवी,धीरेन्द्र वर्मा धीर,ममता राजपूत,अनिल कुमार राही,सत्यदेव विजय,प्रमिला किरण,सुमन सिंह उपस्थित थी।
संस्था के अनवरत विकास की गतिविधियों पर परिचर्चा में उपस्थित सभी पदाधिकारियों ने अपने मत रखते हुए कहा कि संस्था को आगे ले जाने हेतु सभी की सहभागिता तन-मन-धन से होनी चाहिए और कोई भी कार्यक्रम हो सभी को समय निकालकर अपनी सहभागिता के साथ-साथ शेयर,कमेन्ट,लाइक जैसी प्रतिक्रिया देकर एक जुटता का परिचय देना चाहिए।संस्था द्वारा मासिक पत्रिका,संसमरण, वार्षिकांक,साझा-संकलन जैसे कार्य करके साहित्य कलमकारों के साथ-साथ संस्था को भी राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाये और संस्था के कार्यक्रम को व्हाटशाप,फेसबुक,गूगल के माध्यम के साथ-साथ इन्स्टाग्राम, यू-ट्यूब तक ले जाया जाए ऐसी भूमिका बनाई गई।संस्था द्वारा फेसबुक पर साहित्यकारों हेतु दोहा,छंद,गज़ल,कविता,गीत,कवित्त,सोरठा,मुक्तक जैसी विविध विधाओं पर कार्यशाला चलाई जा रही है जिसका लाभ नवांकुर साहित्यकार ले रहें हैं।राही ने कहा साहित्यिक दिशा-दशा हेतु समर्पण की भावना का होना आवश्यक है कोई भी साहित्यिकार छोटा-बड़ा नही होता वह कवि,साहित्यकार होता है।
अंत में अध्यक्षता कर रहे त्रिपाठी जी ने सभी का आभार व्यक्त कर संगोष्ठी का समापन किया।काव्यपाठ करते हुए अनिल कुमार राही ने कहा--
समझदार है,पर समझता नहीं है।
है सब कुछ पता पर वो कहता नहीं है।।
कमी रात दिन ढूँढता है वो सब में।
मगर अपनी इसलाह करता नहीं है।।
ख़ुदी को ख़ुदा कह रहा आदमी वो।
जिसे आदमी कोई कहता नहीं है।।

 संचालन करते हुए दीप ने श्रावण माह में गुनगुनाई जाने वाली गीत विधा कजरी को सूनाया--------

परदेशी संदेश हौं पठावतानी,
देशवा बुलावतानी हो ।।

काली बदरी के भीत,
लिखतानी हम गीत -2
मीत तहरा बिना सावन बितावतानी।
देशवा बुलावतानी हो।। (1)

पतझड,फाग,बसंत, 
नाहिं आयो मोरे कंत -2
अंत सावन कै,तहरा जतावतानी ।
देशवा बुलावतानी हो ।। (2)

झूमका,नथनी औ बिंदिया,
नाहीं चाही हमरा तिजिया -2
निंदिया आवे ना,काहे के सतावतानी।
देशवा बुलावतानी हो ।। (3)

 धीरेन्द्र वर्मा धीर ने कहा----
इश्क़ में डूबके खुद सज़ल हो गया
मैं उसे चूमकर खुद कमल हो गया
छोड़कर मैं जहां खास उसके लिए
आज तो बावफा मैं गज़ल हो गया।

 कवियत्री सुमन सिंह ने कृष्ण के प्रेम में दिवानी मीरा पर कहती हैं----
मीरा भयी , यूँ बावरी,
मन कृष्ण की,छवि साँवरी ।
जग का कहाँ,अब भान है,
मोहन बना,तन प्रान है।।

 अपनी गज़ल सुनाते हुए संस्थापक श्रावस्तवी ने कहा---
मेरे दिल मे ऐ सितमगर तेरा नाम आख़िरी है।
तू ही आख़िरी मुहब्बत तू मुक़ाम आख़िरी है।।

कवियत्री ममता राजपूत जिंदगी की बात करते हुए कहती हैं---

तुम और मैं ओस की दो बूंदों जैसी
ज़िंदगी के सफ़ में मिले।
जिस राह पर ज़िंदगी हमें ले गई
हम उसी राह पर चल दिये।।

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