" दीपों का पर्व दीपावली "

           
दीपों का पर्व दीपावली हम मनाते
श्री राम विजय का पर्व
हर्षोल्लास से दीप जला मनाते.
अंधकार जग का हरते.
दीपों से जगमग जग करते.

बाह्य रूप से दीप जलाते 
दीपावली सब मिल मनाते.
अंतर्मन  का दीप जलाएंगे
तम दिलों का मिटायेंगे हम
दीपावली सफल बनाएंगे.

नफरतों को दिलों  से मिटायेंगे
दिन- हीन को गले लगाएंगे.
भेद आपस के सभी मिटायेंगे
प्रेम का सुंदर दीप जलाएंगे
दीपावली सार्थक बनाएंगे.

बिछुड़ो को आपस में मिलाएंगे
भूले बिसरे रिश्तो को,प्रेम से जीवित करेंगे.
हर रिश्ते को मनमीत मिले, 
मिलन का ऐसा दीप जलाएंगे.
जीवन सबका ज्योतिर्मय करेंगे.

आओ! इस दिवाली प्रेम का एक दीप जलाएं, 
जीवन के पतझड़ को हटाएँ
खुशियों की बहार हम लाएं
दिल की सूखी धरती पर
प्रेम भीगी वर्षा बरसाए.
बूझे अरमानों को जीवंत करेंगे
दीपों से जगमग जग करेंगे.
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            चंन्द्रकला भरतिया
               नागपुर महाराष्ट्र
(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित रचना) 

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