मुंबई : अखण्ड पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन पिछले कई वर्षों से पत्रकारों के हित की लड़ाई लड़ रही है जिसमे मुख्य रूप से पत्रकार सुरक्षा व पत्रकार मानदेय को लेकर शासन प्रशासन से लगातार संघर्षरत है। बता दें कि अखण्ड पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन अपने इसी कार्यकुशलता के मद्देनजर आज लगभग 12 राज्यों में प्रगतिशील है। महाराष्ट्र राज्य के पालघर जिला में महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष लालप्रताप सिंह की अध्यक्षता में शुक्रवार को एक बैठक संपन्न हुई, जहां पर पालघर जिला की नई कार्यकारिणी बनाई गई। उक्त बैठक में महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष लालप्रताप सिंह ने बैठक में उपस्थित पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पत्रकारिता देश के चार मुख्य स्तम्भों में से सबसे प्रमुख स्तंभ माना जाता है। बावजूद इसके देश की आजादी से लेकर आज तक न जाने कितनी सरकारें आयीं और चली गयीं लेकिन आज तक किसी भी सरकार के कार्यकाल में देश के चौथे स्तंभ अथवा पत्रकार हित में न तो कोई चर्चा की गयी और न ही कोई बिल ही प्रस्तुत किया गया है। जहां एक तरफ सरकारों द्वारा देश के तीनों स्तंभ न्यायपालिका,कार्यपालिका,व व्यवस्थापिका से जुड़े व्यक्तियों को पुर्ण सुरक्षा के साथ साथ अन्य समस्त लाभकारी सुविधाएं प्रदान की जा रहीं हैं वहीं दूसरी और देश के चौथे स्तंभ पत्रकारिता की पूरी तरह से उपेक्षा की जा रही है। जबकि एक पत्रकार एसी में बैठ कर नही बल्कि भयंकर सर्दी,गर्मी,बरसात में भाग दौड़ कर देश व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करता है। इतना ही नहीं इसी दरम्यान पत्रकारों का उत्पीड़न भी किया जाता है। माफियाओं द्वारा पत्रकार को धमकियां दिया जाना तो जैसे आम बात हो गयी है। शासन प्रशासन के किसी भी कर्मचारी के विरूद्ध शिकायत मिलने पर केवल जांच के नाम कर मामले को लंबे समय तक लटकाया जाता है लेकिन वहीं पत्रकार के विरुद्ध प्रार्थना पत्र प्राप्त होते ही सीधे मामला दर्ज कर जेल भेज दिया जाता है। आखिर भारत का संविधान क्या कहता है..??पहले जांच या फिर गिरफ्तारी..?? यदि जांच, तो पत्रकार की सीधे गिरफ्तारी क्यों.. ? यदि गिरफ्तारी तो सरकारी अधिकारी/कर्मचारी की गिरफ्तारी क्यों नहीं..?
आखिर एक देश में दो अलग-अलग नियम क्यों..?? पत्रकारों की ऐसी ही अनेक समस्याओं के संबंध में अखण्ड पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन (भारत) के द्वारा पत्रकारों के संबंध में कानून बनाये जाने की मांग को लेकर संगठन कार्यरत है। संगठन की शासन प्रशासन से मांग है की पत्रकारों के संबंध में कोई भी मामला आने पर शासन प्रशासन सर्वप्रथम सरकारी अधिकारी की ही तरह जांच करें व सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों के ही तर्ज पर पत्रकार व उनके परिजनों को स्वास्थ्य लाभ दिया जाये। कवरेज करते समय मृत्यु होने पर पत्रकार के आश्रितों को एक करोड़ रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए। भूमाफियाओं, अवैध निर्माणकर्ताओं, खनन माफियाओं, शराब माफियाओं के विरुद्ध चलाए जा रहे समाचारों पर तत्काल संज्ञान में लेते हुए कार्यवाही की जाये तथा संज्ञान न लेने वाले अधिकारी के विरूद्ध संरक्षण देने के तहत कार्यवाही की जाए। पत्रकार को धमकी दिया जाना संज्ञेय अपराध माना जाए। आगे उन्होंने बताया कि संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शील गहलौत द्वारा देश के सभी पत्रकारों के हितों में विभिन्न मांगों को लेकर सरकार के जिम्मेदारों से लगातार जोर शोर से लड़ाई की जा रही है। जिसका प्रतिफल जल्द ही सबके सामने होगा।
इस मुद्दे पर विचार व्यक्त करते हुए संगठन के कार्यवाहक राष्ट्रीय महामंत्री संदीप सिंह ने कहा वर्तमान समय में सरकार की योजनाएं अगर धरातल पर असफल होती है , या राज्य किसी के मूल अधिकारों की सुरक्षा में असफल रहता है, या प्रशासन अपने पद का दुरुपयोग करता है तो जनता और शासन के सामने सच्चाई लाने का काम एक पत्रकार करता है । लेकिन जिस तरह पत्रकारों को डराने का कार्य इस समय शुरू हुआ है वो चिंताजनक है, आप जौनपुर की ही घटना ले लीजिए पत्रकार ने गौशाला में हो रही पशुओं की मौत की खबर चला दी पत्रकार पर एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया।अतः हम कानून निर्माताओं से मांग करते है कि पत्रकारों के हितों और सुरक्षा की व्यवस्था कर लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील होने से बचा ले। अखंड पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन भारत ये मांग लगातार करता रहा है और करता रहेगा।
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