कजरी -राम वन गमन


हरे रामा लषण और रघुराई, संग सिया माई रे हरी।

कुबरी ने चुगली कीन्हां, कैकयी की मति हर लीन्हा रामा, हरे रामा अवध में त्राहि मचाई।।
संग‌ सिया माई रे हरी।।

सिय-रघुवर बलकल धारे, लक्ष्मण जी बने रखवारे रामा, हरे रामा वन को चले दूनों भाई।।
संग सिया माई रे हरी।।

रघुकुल के भवन करि सूना, दुख डारि दिहे दिन दूना रामा, हरे रामा दशरथ जान गंवाई।।
संग सिया माई रे हरी।।

भरतलाल जब आए, पुरवासिन हाल सुनाए रामा, हरे रामा “अच्छे” कहत बिलखाई।।
संग सिया माई रे हरी।।

कवि-अच्छेलाल पाठक

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