ऐ बरसात ज़रा थम के.....


नीले अंबर पर घनघोर घटा छाई,
मौसम ने अपनी रुख बदलती दिखलाई।
पक्षी चहक उठे खिले हैं उपवन वन के,
जैसे प्रकृति कह रही हो,
ऐ बरसात ज़रा थम के....

जब आयी तब लायी है कई सौगात,
श्रावण मास संग भोलेनाथ का प्यार,
भाद्रपद में गूंज उठे अंबार।
जब भी आयी तब आयी झूम-झूम के
ऐ बरसात ज़रा थम के....

नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी आस में बैठे थे,
जब आओ तुम तब भीगने की उल्लास में बैठे थे।
आते ही तेरे खिल उठे उनके चेहरे उदासी से,
समय ने कहा दूर करो पल इंतजार के,
ऐ बरसात ज़रा थम के....

आने का संकेत देती हो बरसने के पहले,
संग लाती हो आशाओं की हवाई ठंडी ठंडी।
लोगों की कामना है रहती आओ तुम संभल के,
समय से आना समय से जाना,
ऐ बरसात ज़रा थम के....

- मानसी श्रीवास्तव 'शिवन्या'
  (मुंबई)

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