मिट्टी का तन है ये मिट्टी हो जाएगा,
यादों में मानुष तन धूं-धूं खो जाएगा।
कुछ तो लकड़ियां होंगी,आग और घी होगा
अस्थियां बचेंगी कुछ शेष सब हवन होगा,
मित्र कुछ हंसेंगे और कुछ तो गालियां देंगे
मुक्ति मिल गयी इससे कुछ तो तालियां देंगे,
आदमी तो अच्छा था ,था वो गलत संगत में,
बामन था पर वो नहीं बैठा किसी पंगत में,
दोस्त था सभी का वो हँसता मुस्कराता था
भोला था विष पीकर मित्रता निभाता था,
विष पाई चला गया नीलकंठ रूठ गया,
आश्रय का एक बड़ा वृक्ष आज सूख गया,
अनचाहे मन से और सूखी सी आंखों से
उड़ जाए पंछी ज्यों चिर परिचित शाखों से
खुशबू को खोजेगी हवा भी मशान की,
चिता जल रही होगी एक मलिन शान की।
- वागीश
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