दुनिया में नित्य नए परिवर्तन हो रहे हैं। विज्ञान की प्रगति के कारण विश्व में अद्भुत बदलाव हुआ है। आज हम 'विश्वग्राम' का रूप ले चुके हैं। सूचना-प्रौद्योगिकी ने तो हमारे जीवन को बड़ी गहराई से प्रभावित किया है। आज दुनिया में नए शोधों और आविष्कारों की होड़-सी मची है। हमारी बुद्धि मानव-निर्माण के मुहाने पर खड़ी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मानवीय चेतना का एक ऐसा उत्कर्ष है जिसकी चर्चा चारों ओर हो रही है। इस विषय पर समर्थन और विरोध के स्वर आज मुखर हैं। मैं अपनी बात कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उज्ज्वल पक्ष में करूँगा।
हमारे आस-पास जब-जब कोई बदलाव होता है तो हम उसे स्वीकार करना नहीं चाहते। सबसे पहले हमारी बुद्धि विद्रोह करती है। तत्पश्चात अपनी सुविधानुसार उस बदलाव में नकारात्मकता निकाली जाती है। अंततः उसे अपना लिया जाता है। जब सबसे पहले कंप्यूटर हमारे देश में आया तो उसका लोगों ने खूब विरोध किया। दलील दी गई कि सबकी नौकरी चली जाएगी। सबका काम एक अकेला कंप्यूटर कर लेगा। हाय - तौबा मचाने के बाद अंततः कंप्यूटर को सबने स्वीकार किया। उसके बाद देश में अनेक बदलाव आए लेकिन सबने अपनाया। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमें डरा रही है। हमें वैज्ञानिकों की इस अनोखी उपलब्धि को भी अंगीकार कर लेना चाहिए क्योंकि इसमें कई खूबियाँ हैं। यदि हम शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लागू करते हैं तो सभी छात्रों को एक समान शिक्षा प्राप्त होगी। शंका-समाधान भी तुरंत किया जा सकेगा। अंक, उपस्थिति, रिकॉर्ड आदि में सरलता के साथ-साथ शुद्धता होगी।
विज्ञान के इस चमत्कार को यदि उद्योग-जगत में उतारा गया तो उत्पादन बढ़ेगा। हम वैश्विक माँग की पूर्ति करने की स्थिति में बने रहेंगे। उत्पादों की गुणवत्ता का एक मानक हमारी ओर से सुनिश्चित हो सकेगा। हालांकि वर्तमान में चिकित्सा - क्षेत्र समुन्नत है। इसके बावजूद कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा इस क्षेत्र में शोध, सुविधा एवं सेवा में क्रांतिकारी बदलाव और विस्तार देखने को मिलेगा। ऑपरेशन, औषधि एवं मरीजों की देख-भाल में काफी मदद मिलेगी। यातायात के साधनों में डिजिटल निर्भरता बढ़ती जा रही है किंतु भारत जैसे देश में दुर्घटनाओं में कोई कमी नहीं आ रही है। इस तरह की बुद्धिमत्ता द्वारा काफी हद तक हम हादसों पर नियंत्रण पा सकते हैं। दुर्घटनाओं में 'मानवीय भूल' का नाम देकर संबंधित अधिकारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं किंतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता से ऐसी भूल पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
मोबाइल की तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी कई खूबियों से लैस है। आने वाले समय में यह सभी क्षेत्रों की जरूरत बनेगा। यदि इसे नकारने की कोशिश की गई तो निश्चित रूप से हम तकनीकी विकास की दुनिया में पीछे रह जाएंगे। हमें अपनी दोनों बाहें फैलाकर इस अद्भुत तकनीक का आलिंगन करना चाहिए। कहा भी गया है -
"आज का विज्ञान कल की तकनीक है।
देश-दुनिया के विकास में यही लीक है।।"
अपनाने में इसे होगा सबका भला।
अशिक्षा, गरीबी जैसी दूर होगी बला।।"
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता दुनिया के लिए शुभ है। 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता विश्व के लिए घातक नहीं है', अगर ऐसा होता तो भारत सरकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता को नई शिक्षा नीति के पठन-पाठन में शामिल नहीं करती। इसके प्रयोग द्वारा मानव कल्याण के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। कवि विलियम शेक्सपियर ने ठीक ही कहा है, "कोई भी वस्तु अच्छी या बुरी नहीं होती, बल्कि उसका प्रयोग वैसा होता है।"
- डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय
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