हरे रामा कहवां के आफ़त आई,कहत रघुराई रे हरी।

युद्ध विरुद्ध लड़ें लक्ष्मण -घन,समर भूमि अरराई रामा,हरे रामा वाण पर वाण चलाई।।कहत रघुराई रे हरी।।

सनन सनन सन वाण चलावें,घन -लक्षमण अकुताई रामा, हरे रामा लाश पे लाश जुटाई।।कहत रघुराई रे हरी।।

वीरघातिनी छांड़ेस सांगी,ते जवंत लक्ष्मन उर लागी रामा,हरे रामा कैसन शक्ति समाई।।कहत रघुराई रे हरी।।

विलख विलख के रघुवर रोवैं,अंसुवन से मुंह धोवैं रामा,हरे रामा हनुमत वैद्य बोलाई।।कहत रघुराई रे हरी।।
धवलागिरि को हनुमत धाए,बूटी तुरत लिआए रामा, हरे रामा अच्छे दवा पिलाई।।कहत रघुराई रे हरी।।

मूर्छा टूटी लक्ष्मण जागे,भालू कपि हर्षाई रामा, हरे रामा सुर बरसावें फूल,जयति जय गाई रे हरी

कवि-अच्छेलाल पाठक

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