कोशिश साहित्यिक मंच द्वारा कवियों, शायरों के नाम एक शाम

जौनपुर ।साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था कोशिश,जौनपुर उत्तर प्रदेश की काव्य गोष्ठी बाबू रामेश्वर प्रसाद हाल, रासमंडल जौनपुर में प्रख्यात साहित्यकार प्रो. पी.सी.विश्वकर्मा की अध्यक्षता में आयोजित की गई।जनपद के कवियों और शायरों के नाम एक शाम का विशेष आयोजन किया गया।जनार्दन अष्ठाना पथिक ने अपने गीत द्वारा माँ हंसवाहिनी का आह्वान किया। फिर क्या था,लहरा उठी कविता की कल-कल,छल-छल करती अविरल रस-धारा। राजेश पांडेय की रचना-उसके रस का रसपान करो/पर मत हो जाना मतवाला,खूब पसंद की गई। संजय सिंह सागर की रचना- चंद लमहों को लिखता रहा रात भर/वियोगी हृदय की पीर कह गई। अमृत प्रकाश की रचना-न घबराना कभी मुश्किल से प्यारे और समीर की रचना- महतारी अस दुलार न पइबा,सुंदर संदेश दे गई।सुमति श्रीवास्तव का गीत-छोड़कर तू गया मुस्कराती रही. विछोह को परिभाषित कर गया तो वहीं अंसार का शेर--क्या कीजिए ऐसे में किसी गैर से शिकवा/जब मेरे मुखालिफ मेरे अंदर निकल आए, मानव मन का द्वंद्व परोस गया। रामजीत मिश्र ने मानवीय मूल्य के क्षरण पर कहा--दुनिया को बचाने के लिए कुछ नहीं बचा,सचमुच विनाशक युद्ध का चित्र उभर आया। प्रो.आर. एन.सिंह की कविता--देश सर्वोपरि नहीं तो सारा प्रवचन व्यर्थ है/और तकरीरों का भी होता नहीं कोई अर्थ है। राष्ट्र वाद का स्वर मुखर कर गई। जनार्दन अष्ठाना पथिक का गीत--तेरी अनुपस्थिति में आकर चाँद बहुत कुछ कह जाता है/प्रेयषी की स्मृति को जगा जाता है ।गिरीश जी का मुक्तक- किसने सुनहरी धूप बिछा दी है छाँव/सर अपना झुका करके रख दिया है पाँव पर/परिणाम चाहे जो हो महज आप के लिए/हमने लगा दी जिंदगी को हँस के दाँव पर।खूब पसंद किया गया। प्रेम जौनपुरी का शेर--मशरूफ हैं सब जिसको देखो/कोई काम नहीं और काम भी है,एक नये तेवर का दर्शन करा गया। गोष्ठी में अनिल उपाध्याय की क्षणिकाएं चार चाँद लगा गई। सजय सेठ अध्यक्ष जेब्रा जौनपुर और जीतेन्द्र श्रीवास्तव और सुशील दुबे की विशेष उपस्थिति रही। संचालन अशोक मिश्र ने किय।। अंत में सामाजिक सरोकारों से जुड़ीं डाक्टर विमला सिंह ने सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।

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