“गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में व्यक्त जीवन मूल्य” विषय पर महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी

श्रीरामचरित मानस मानव कल्याण का महाकाव्य है - डॉ. सुधाकर मिश्र

मुंबई, । महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई तथा जनसेवा समिति संचालित श्री एम. डी. शाह महिला महाविद्यालय ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, मालाड, मुंबई के हिंदी विभाग के स्नातक एवं स्नातकोत्तर विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “तुलसीदास के रामचरित मानस में व्यक्त जीवन मूल्य” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन सम्पन्न हुआ। 
    इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन, विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वंदना एवं राज्य गीत से हुआ। इसके उपरांत कुछ छात्राओं द्वारा अपने सुमधुर कंठ से रामचरित मानस की चौपाइयों का पाठ किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता जनसेवा समिति के अध्यक्ष, वरिष्ठ शिक्षाविद एवं मुंबई के पूर्व शेरिफ डॉ. मोहनभाई पटेल ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में पूर्व अनुभवों को साझा करते हुए रामानंद सागर के ‘रामायण’ की वास्तविक कथा शैली को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि रामानंद सागर द्वारा निर्देशित ‘रामायण’ का फिल्मांकन करने के लिए लगभग दस से भी अधिक रामायण ग्रंथों को पढ़ा गया था और उनमें सामाजिक दृष्टि से उपयोगी और सकारात्मक पहलुओं को ग्रहण कर दर्शकों तक पहुॅंचाया गया था। उन्होंने रामायण एवं रामचरित मानस में वर्णित वानरों की वास्तविकता का पक्ष भी रखा। तदुपरांत श्री एम. डी. महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. दीपा शर्मा ने अपने स्वागत वक्तव्य में देवदत्त पटनायक के आलेख "राम, द किंग विदाउट एम्बिशन" में चित्रित कबंधा नामक पात्र का ज़िक्र किया | कार्यक्रम की प्रास्ताविकी रखते हुए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि अकादमी, श्रीरामचरितमानस के आदर्शों को समाज में प्रचलित करने के उपक्रम को महत्वपूर्ण मानती है। उन्होंने रामचरित मानस में उल्लिखित पार्वती और शिव संवाद को प्रासंगिक बताया तथा इसके माध्यम से ,माता पार्वती के उद्धरण से छात्राओं को उनके प्रश्न करने के अधिकार से अवगत करवाया। आभासी मंच से प्रमुख अतिथि के रूप में जुड़कर प्रख्यात कहानीकार और गांधीवादी लेखिका डॉ. सुजाता चौधरी ने अपने बीज वक्तव्य में विवेकानंद एवं उनके विचारों को प्रस्तुत किया। सत्र के अंत में सम्माननीय अतिथि डॉ. कल्पना दवे (सचिव, जनसेवा समिति) ने “सुंदरकांड की विशेषताऍं बताते हुए उसके तथ्यों को स्पष्ट किया। सत्र का कुशल संचालन डॉ. महेंद्र गुहा एवं आभार ज्ञापन डॉ .चम्पा मासीवाल ने किया। इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय “रामचरित मानस में व्यक्त धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन मूल्य” पर केंद्रित रहा, जिसकी अध्यक्षता का दायित्व हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. सुधाकर मिश्र ने निभाया। सत्र के विषय विशेषज्ञ के रूप में सोमैया विद्याविहार यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ़ लैंग्वेज पूर्व डीन डॉ. सतीश पांडेय, एम.एम.पी. शाह महाविद्यालय, माटुंगा, मुंबई की पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा मिश्रा तथा एम.डी. कॉलेज, परेल, मुंबई के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश शुक्ला ने अपनी ज्ञानवाणी से श्रोताओं को लाभान्वित किया। डॉ. उमेश शुक्ला ने कहा कि “रामचरित मानस मनुष्य बनाने का ग्रंथ है।” साथ ही उन्होंने कहा कि “रामचरित मानस में 266 ग्रंथों का सारगर्भित उल्लेख है।“ उसके बाद डॉ. उषा मिश्रा ने रामचरित मानस की विशिष्टता को बतलाते हुए मनुष्य के जीवन मूल्यों पर अपना मत प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस तीर्थ नहीं, मगर तीर्थ तक पहुँचने का मार्ग है। डॉ. सतीश पांडे ने तुलसीदास के जीवन चरित्र को बताते हुए शैव और वैष्णव भक्ति और उनके बीच के भेद को स्पष्ट किया। सत्र के अंत में डॉ. सुधाकर मिश्र ने सत्र के सभी विषय विशेषज्ञों की बातों पर अपनी सहमति जताते हुए, उनकी बातों की महत्ता सिद्ध की। उन्होंने कहा कि श्री रामचरित मानस मानव कल्याण का महाकाव्य है। भोजनावकाश के बाद द्वितीय सत्र “रामचरित मानस में व्यक्त पारिवारिक, सामाजिक और नैतिक जीवन मूल्य” विषय पर आधारित था। इस सत्र की अध्यक्षता के रूप में सरदार पटेल यूनिवर्सिटी आणंद, गुजरात से डॉ. नवनीत चौहान आभासीय माध्यम से जुड़े। विषय विशेषज्ञ के तौर पर एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई की पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता साखरे, बी.एम. रुइया गर्ल्स कॉलेज, मुंबई की प्राचार्या डॉ. संतोष कौल काक तथा सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज, मुंबई के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. भगवतीप्रसाद उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त कर विद्यार्थियों को रामचरित मानस के विभिन्न मूल्यों से अवगत करवाया और उन्हें अपने जीवन में उतारने की सलाह दी। डॉ. साखरे ने अपने भाषण में सगुण और निर्गुण भक्ति पर प्रकाश डालते हुए भक्तिकालीन साहित्य पर अपना मत प्रस्तुत किया। डॉ. संतोष कौल ने रामचारित मानस में राम के उदात्त स्वभाव को छात्राओं के समक्ष रखा। इस सत्र का सूत्र संचालन डॉ. मेरु प्रभा मिश्रा ने किया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रमुख रूप से विभिन्न महाविद्यालयों के प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों द्वारा लगभग 12 प्रपत्रों का वाचन किया गया। इस समानांतर सत्र की अध्यक्षता श्री एम. डी. शाह महिला महाविद्यालय के इतिहास विभाग के प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार मिश्रा एवं विशेष अतिथि के रूप में बी.एम. रुइया गर्ल्स कॉलेज, मुंबई की डॉ. सुनीता मिश्रा ने की, जिसका सूत्र संचालन उषा पासवान ने किया और आभार डॉ. रामवती वर्मा ने व्यक्त किया। संगोष्ठी के समापन सत्र में डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे, डॉ. दीपा शर्मा और श्री एम. डी. शाह महिला महाविद्यालय के इतिहास की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. रंजना मिश्रा लखनऊ से ऑनलाइन माध्यम से जुड़ी थीं। समापन सत्र का कुशल संचालन महाविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. हिरल शादीजा ने किया। संगोष्ठी का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया। 
       

Post a Comment

0 Comments