आज C B S E बोर्ड, I C S E बोर्ड एवं विभिन्न राज्यों के बोर्ड इत्यादि में प्राप्त अंक 70%, 80%, 85%, 90%, 95% फ़िर भी न तो आजकल के बच्चों के चेहरे पर वैसी रौनक है न ही उनके माँ - बाप चैन से बैठे हैं ।
शिक्षा भी अब इतनी महंगी हो चुकी है कि सामान्य व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना दिवास्वप्न बनता जा रहा है ।
आप को यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा कि हमने आई आई टी, बी.एच. यू से सन् १९७१ में इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम उत्तीर्ण की । उस समय हमें १००/- मासिक छात्रव्रित्ति मिलती थी जिससे हमारे कालेज और होस्टल का लगभग ८०% खर्च चल जाता था और प्रति माह मात्र १०/१५ रूपये हमारे अभिभावक का योगदान होता था ।
वे भी क्या दिन थे जब हाई स्कूल मे पांच साल लगाने के बाद कोई थर्ड डिविजन से पास होता था तो मुहल्ले भर मे मिठाई बांटी जाती थी ।
59% लाने वाले बच्चों के माँ बाप जमाने भर को बताते फ़िरते थे कि हमारा बच्चा गुड़ सेकंड दी इसिओं से पास हुआ है (मै उसको नमन करना चाह्ता हूँ जिसने सबसे पहले सेकंड डिविजन मे गुड़ शब्द को जोडा) ।
उन दिनो टयूसन पढ़ने की प्रथा लगभग नहीं थी और ट्यूसन पढ़ने वाले बच्चों को कमजोर माना जाता था ।
अपवादों को छोड़ कर तब के बच्चे फ़ेल होने पर भी आत्म हत्या जैसा कदम नहीं उठाते थे, वास्तव मे वे बच्चे जिजीविषा के धनी थे और परिस्थितियों से समझौता कर किसी भी व्यवसाय को अपना लेते थे और सुखी जीवन बिताते थे ।
आजकल 90% अंक लाना आम बात है, तब बच्चे 33% लाकर भी खुश थे ।
तब से आजतक गंगा और यमुना नदियों मे बहुत सा पानी बह गया है ।
आज कभी टॉपर्स के साक्षात्कार देखिए, कोई इन्जीनियर बनना चाहता है कोई डॉक्टर बनना चाहता है कोई I A S बनना चाहता है, यह इसलिये नहीं कि उन्हे समाज की सेवा करनी है या वे दुनिया को बेहतर बनाना चाहते हैं, बल्कि इसलिये कि उन्हे पैसा कमाना है, महंगी गाड़ी खरीदनी है, बड़ा घर खरीदना है, और पीछे छूट चुके लोगों को और भी पीछे छोड़ देना है तथा स्वयं को उनसे अलग और श्रेष्ठतम दिखाना है ।
दुर्भाग्यवश आज इंजीनियर और डाक्टर भी IAS/IPS के आकर्षण से अछूते नहीं रह गये और अधिक से अधिक सिविल सर्विस में जा रहे हैं और अपने मूल ज्ञान की तिलांजलि दे रहे हैं ।
कितना कष्ट होता है यह सुनकर कि धोखे से लोगों की किडनी बेच देने वाले डॉक्टर भी 80 से 95℅ वाले होते हैं, रिश्वतखोर इंजीनियर, सिविल सर्विस भी कोई कम मेरिट वाले नही होते ।
मान्यता हैं कि I A S की परीक्षा देश की सबसे बड़ी परीक्षा है, इन्हे बहुत ही मेधावी माना जाता है, लेकिन आप विचार कीजिये कि देश का कौन सा ऐसा जिला है, जहाँ ये तथाकथित विद्वान लोग नियुक्त नहीं है ? किन्तु फ़िर भी कौन सा ऐसा शहर है जहाँ कूड़े के ढेर नहीं लगे हैं, लोग त्राहि त्राहि नहीं कर रहे हैं ??
जहाँ अपराध और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच रहा है और बिना रिश्वत के पत्ता नहीं हिलता वहां क्या लाभ है ऐसे 90%, 99% का ??
कदाचित आज हमने अपने बच्चो से उनका बचपन छीन लिया है और कितना अजीबोग़रीब बना दिया है उन्हें जो बचपन में ही अपार संकटों का सामना करने लगते हैं ।
ग्लोबल वार्मिन्ग बढ़ रही है, पेड़ काटे ही जा रहे है, लेकिन हमारे बच्चों को चिन्ता 90% से अधिक अंक प्राप्त करने की है, इसी गति से चलता रहा तो लगता है एक दिन हमारे बच्चे 100% से भी जादा अंक लाने लगेंगे और फिर भी सफलता संदिग्ध होगी ।
इस अन्धी दौड़ का परिणाम यह होगा कि हम प्रकृति को इतना हानि पहुंचा चुके होंगे कि दुनिया जीने लायक नहीं रहेगी ।
एक गूढ़ प्रश्न है कि क्या हम ऐसे समाज और न रहने लायक़ परिस्थिति में ही जीने के लिए विवश हो जायेंगे या इन समस्याओं पर चर्चा और समाधान पर विचार किया जायेगा ??
दिनेश चन्द्र उपाध्याय
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