रामराज्य एक राजनैतिक दर्शन -

२२ जनवरी २०२४ को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पूरे विश्व का आकर्षण बन चुका है । 

राम राज्य को केवल धार्मिक आस्था के अनुसार प्रसारित करना भयंकर भूल होगी । राम राज्य को एक राजनैतिक दर्शन के रूप में प्रस्तुत करने की नितांत आवश्यकता है । 

वैश्विक समाज का ध्यान राम राज्य को शासन की बेहतरी के लिए सबसे अधिक उपयुक्त व्यवस्था के रूप में स्वीकार करने के लिए प्रेरित करने का उपक्रम करना चाहिए जिससे वैश्विक समाज इसकी उपयोगिता को समझ सके और इसे लागू करने का प्रयास करे ।

आज तक विश्व में 
प्रचलित राजनैतिक व्यवस्थायें जैसे समाजवाद, राजतंत्र, लोकतंत्र आधुनिक युग की उत्पत्ति है जिसे अपनाने के पश्चात आज पूरा विश्व आग की लपटों से जूझ रहा है । 

राम राज्य का सिद्धांत शदियों पुराना है और इस सिद्धांत से हज़ारों वर्ष तक विश्व में शांति और सहिष्णुता द्रिष्टिगोचर होती थी । 

राम राज्य एक राजनैतिक और सामाजिक शासन का आदर्श प्रस्तुत करता है जो भारत देश की प्राचीनतम शासन व्यवस्था है । यह शासन व्यवस्था हज़ारों वर्ष पहले ही राजतंत्र में लोकतंत्र की स्थापना की बात करता था ।

आवश्यकता है कि जिस प्रकार आधुनिक शासन व्यवस्था समाजवाद, साम्यवाद, लोकतंत्र हमारे देश और अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, राम राज्य शासन पद्धति को भी इस विषय को भी विश्वविद्यालयों में प्राथमिकता दी जाय ।

आधुनिक काल में गोस्वामी तुलसीदास जी एवं स्वतंत्रता आन्दोलन के पश्चात महात्मा गांधी ने भी राम राज्य की परिकल्पना की थी किन्तु कालांतर में इसे एक बक्से में बंद कर दिया और साम्यवादी शासन का मार्ग प्रशस्त किया जो दुर्भाग्यपूर्ण है ।

राम राज्य का द्रिष्टांत ऐसे समझा जा सकता है कि इसके वास्तविक स्वरूप के पश्चात वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के अभिषेक के बाद युद्ध कांड में राम राज्य के वर्णन के रूप में है जिसमें कहा गया कि वह एक ऐसा राज्य था जहां दु: ख में डूबी कोई विधवा नहीं थी, जंगली जानवरों और बीमारियों का डर नहीं था । किसी निरर्थकता की अनुभूति नहीं थी, व्रिद्ध लोगों को युवाओं का अंतिम संस्कार नहीं करना पड़ता था । हर प्राणी सुखी, परोपकारी, चरित्रवान और सद्विचार युक्त था । सभी सदाचार में विश्वास करते थे, लूट, चोरी और झूठ का नामोनिशान नहीं था । बिना कीड़े मकोड़े के फूल और फल होते थे । सब मौसम समय पर आते थे और हवायें मन को आनन्दित करती थीं । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सब अपने कर्तव्यों का पालन लगन से कर रहे थे । किसी में कोई ईर्ष्या, द्वेष लालच नहीं थी । 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया था, सारे भय-शोक दूर हो गये थे एवं दैहिक, दैविक, और भौतिक तापों लोगों से मुक्ति मिल गई थी ।

आवश्यकता है कि राम राज्य की सर्वत्र स्थापना हो और हर व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चले जिससे आज धरती पर ही स्वर्ग की अनुभूति हो । 

कम से कम हमारे देश में राम राज्य का उदय होने का आभास होने लगा है आशा है हमारे देश में पुनः राम राज्य की स्थापना भविष्य में हो जायेगा ।

दिनेश चन्द्र उपाध्याय

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