दूरदर्शन के ओ टी टी वेव्स पर कल से एक नई श्रृंखला"सरपंच साहब"की शुरुवात हुईं है। इस श्रृंखला में एक अहम किरदार का नाम है लट्टन और जिसे निभाया है अभिनेता विजय पांडे ने जिनके अभिनय कला को ख़ूब सराहा जा रहा है। प्रस्तुत है विजय पांडे से एक लंबी बातचीत:
सबसे पहले अपने बारे में बताएं- मेरा जन्म कोलकाता की हलचल भरी गलियों में हुआ, लेकिन मेरी आत्मा बिहार के छपरा जिले के पिपरा गाँव से जुड़ी रही है जहां का मूलतः मैं निवासी हूं। पिपरा गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू और वहाँ की सादगी मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा बनी। मेरे पिता एक होटल व्यवसायी थे, और धीरे-धीरे हमारा परिवार पटना में बस गया। पटना मेरे लिए एक ऐसा शहर था, जो गाँव की सादगी और शहर की रफ्तार को जोड़ता था। यहीं से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की—राम मनोहर राय सेमिनरी से +2 और ए.एन. कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।
अभिनय के क्षेत्र में जाने की प्रेरणा कैसे मिली?
युवावस्था के दिन मेरे लिए रोमांच से भरे थे। जब मैं +2 में था, तो साइकिल से स्कूल जाता था। रास्ते में पटना का कालिदास रंगालय दिखता, जहाँ हर शाम लोगों की भीड़ जमा होती थी। मेरे मन में हमेशा उत्सुकता रहती थी कि आखिर यहाँ क्या होता है? मेरे एक दोस्त, जिसके पिता रंगालय से जुड़े थे, ने मुझे बताया कि यहाँ नाटक मंचित होते हैं। पिपरा गाँव में दुर्गापूजा के दौरान मैंने नाटकों को देखा था, जहाँ साड़ी और चादर से स्टेज बनाया जाता था। लेकिन कालिदास रंगालय का अनुभव बिल्कुल अलग था।एक दिन मेरा दोस्त मुझे वहाँ एक नाटक दिखाने ले गया। जैसे ही मैं उस कैंपस में घुसा, मैं मंत्रमुग्ध हो गया। प्रोफेशनल स्टेज, लाइटिंग, दर्शकों की तालियाँ, और कलाकारों का जीवंत प्रदर्शन यह सब मेरे लिए एक नया संसार था। उस दिन मेरे अंदर अभिनय का कीड़ा जागा, और मैंने उसे कभी बाहर नहीं निकलने दिया। मैंने मन-ही-मन ठान लिया, "अंदर ही रहो और मुझे काटते रहो!"
अभिनय की दुनिया इतनी आसान नहीं होती जाहिर है आपको भी काफ़ी संघर्ष करना पड़ा होगा, अपने संघर्ष के दिनों के बारे में कुछ बताएं :
अभिनय का रास्ता चुनना आसान नहीं था। मैंने यह फैसला मन ही मन ले तो लिया था , लेकिन परिवार को बताने की हिम्मत नहीं थी। यह मेरे परिवार के लिए एक बड़ा बदलाव था। घर में थोड़ा विरोध हुआ, लेकिन धीरे-धीरे सब मान गए। मैंने नाटकों में हिस्सा लेना शुरू किया, और मेरे परिवार वाले दर्शक बनकर मेरे प्रदर्शन देखने आने लगे। जब नाटक के बाद अखबारों में मेरा नाम छपने लगा और तारीफ होने लगी, तो परिवार को यकीन हो गया कि उनका बेटा सही रास्ते पर है।
सुना है आप कुछ दिनों तक पटना दूरदर्शन से भी जुड़े हुए थे:
सही सुना है आपने,उस समय पटना दूरदर्शन शुरू हो चुका था, जहाँ मुझे कुछ धारावाहिकों में काम मिला। फिर ई टीवी बिहार सैटेलाइट चैनल ने मुझे और अवसर दिए। यहाँ मैंने फिल्म निर्माण की बारीकियाँ सीखीं—स्क्रिप्टिंग, कैमरा एंगल, एडिटिंग, डायरेक्शन, प्रोडक्शन—सब कुछ। कम बजट के प्रोजेक्ट्स में एक व्यक्ति को कई भूमिकाएँ निभानी पड़ती थीं, और यह अनुभव मेरे लिए अनमोल साबित हुआ।
मुंबई आने की योजना कैसे बनी?
मुंबई मेरे लिए एक सपना था, लेकिन वहाँ के संघर्ष की कहानियाँ सुनकर डर भी लगता था। मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एन एस डी) में दाखिला लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहा। निराशा हुई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। कुछ साल मैंने न्यूज़ चैनल में नौकरी की, लेकिन मेरी आँखों में मुंबई का सपना हमेशा रहा। नौकरी और सपनों के बीच द्वंद्व चलता रहा।आखिरकार, 30 दिसंबर 2010 को मैंने फैसला किया कि अब नौकरी नहीं, मुंबई ही मेरा लक्ष्य है। 31 दिसंबर की रात 12 बजे मैं मुंबई पहुँचा, और 1 जनवरी 2011 से मैंने अपने सपनों को हकीकत में बदलने का संघर्ष शुरू किया। पहले भी मैं मुंबई आ चुका था, लेकिन ज्यादा दिन नहीं रुक पाया था। उस दौरान मैं अपनी फोटो डायरेक्टर्स और प्रोडक्शन हाउस में बाँट देता था। 2011 में मैंने मुंबई में डेरा डाल लिया और काम की तलाश में जुट गया।
मुंबई का संघर्ष, रिजेक्शन का दुःख और फिर सफ़लता की राह कैसा रहा यह सफ़र?
मुंबई में राह आसान नहीं थी। छोटे-मोटे रोल, टीवी सीरियल, फिल्मों में मामूली किरदार—मैं सब करता रहा। ऑडिशन में कभी पास होता, लेकिन ज्यादातर बार रिजेक्शन ही मिलता। मुंबई में आप संघर्ष नहीं करते, आपसे संघर्ष करवाया जाता है। वो रिजेक्शन, वो असफलताएँ—वही आपके अंदर कुछ सुलगाती हैं। मैंने नेटफ्लिक्स के "खाकी द बिहार चैप्टर"में वकील सिंह का किरदार निभाया, एम ए क्स प्लयेर के "पूर्वांचल डायरीज" में एक निगेटिव रोल किया, और फिल्म"तमंचे"में काम किया। कई बार मेरे रोल कट गए, तो कई बार फिल्में ही डब्बाबंद हो गईं। यह सिलसिला 15 साल तक चला।फिर मुझे "सरंपच साहब"सीरीज मिली, जिसके निर्देशक शाहिद खान और कास्टिंग डायरेक्टर साबिर अली हैं। ऑडिशन के बाद मुझे इस सीरीज का हिस्सा बनने का मौका मिला। इस सीरीज में वरिष्ठ कलाकार विनीत कुमार, नीरज सूद, सुनीता रजवार, अनुध सिंह ढाका, और युक्ति कपूर जैसे कलाकार हैं। इसकी कहानी देश के हर गाँव से जुड़ती है, और यह परिवार के साथ देखने लायक है। इसमें कोई अश्लील दृश्य नहीं है, जो इसे खास बनाता है।
इसमें आपके किरदार (लट्टन) की बहुत तारीफ हो रही है कैसा लगता है इस सफ़लता से?
सफ़लता से भला किसे खुशी नहीं होती जाहिर है मुझे भी हो रही है। सच कहूं तो यह दशकों का प्यार है जिसकी जरूरत हरेक कलाकार को होती है जाहिर है मुझे भी इसकी ज़रूरत है। पर यह सफ़लता जिम्मेदारी भी बढ़ा देती है और उस जिम्मेदारी को निभाना बहुत बड़ी बात होती है। मैं यही चाहता हूं कि बस मै इस जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभा सकूं।
ओ टी टी ने कई अच्छे कलाकार दिए हैं,आपकी क्या राय है?
जी बिलकुल ओ टी टी प्लेटफॉर्म्स ने उन कलाकारों को मौका दिया, जो बाजारवाद के कारण गुमनामी में खो रहे थे। यहाँ कहानी "हीरो "होती है, स्टार नहीं। यह मेरे जैसे कलाकारों के लिए एक बड़ा अवसर है।
सुना है आप अपना एक यू ट्यूब चैनल भी चलाते हैं, इस बारे में कुछ बताएं?
कोरोना महामारी के दौरान मैंने अपने यूट्यूब चैनल "गोल्डन मोमेंट्स विथ विजय पांडे"शुरू किया था ।इस चैनल पर मैं फिल्मों और फिल्मी हस्तियों के बारे में अपने नजरिए से बताता हूँ। लोगों को यह पसंद आया, और चैनल को जबरदस्त लोकप्रियता मिली। इसने मुझे सिनेमा के और करीब लाया और मेरे जुनून को एक नया मंच दिया।
पटना शहर ने आपको बहुत कुछ दिया है क्या सोचते हैं आप इस शहर के बारे में?
पटना मेरे लिए सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि मेरी प्रेरणा का स्रोत है। यहाँ की सादगी, मेहनत, और सपनों की उड़ान ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। चाहे मैं कोलकाता की गलियों में बड़ा हुआ, पिपरा गाँव से अपनी जड़ें जोड़ीं, या मुंबई में संघर्ष किया—पटना का स्पंदन मेरे साथ रहा। यह शहर मुझे याद दिलाता है कि जड़ें कितनी भी दूर हों, वो हमेशा आपको ताकत देती हैं।
अपने आगे की योजनाओं के बारे में कुछ बताएं?
मैं भविष्य की ज्यादा योजनाएँ नहीं बनाता, शायद इस मामले में मैं थोड़ा कमजोर हूँ। मेरे लिए अच्छा काम करने के लिए जरूरी है कि अपने दिमाग को एक ब्लैकबोर्ड की तरह रखा जाए, ताकि उस पर कुछ भी लिखा जा सके। मैं बस अच्छे काम की तलाश करता हूँ और उसे पूरी मेहनत से करने की कोशिश करता हूँ। यही मेरी योजना है, और यही रहेगी। बाकी सब ऊपरवाले की मर्जी पर छोड़ देता हूँ। यह दर्शन मुझे हर कदम पर प्रेरित करता है और मेरे संघर्ष को अर्थ देता है।
प्रस्तुति: राजेश कुमार सिन्हा
खार (वेस्ट), मुंबई 52
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