छठ पूजा आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का महापर्व



लेखक–अनिल बारी 

सूर्य उपासना का सबसे पावन और दिव्य पर्व छठ पूजा पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। नदियों, तालाबों और घाटों के किनारे लाखों श्रद्धालु महिलाएँ और पुरुष एकत्र होकर सूर्य देव और छठी मइया की आराधना में लीन हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति का वह उज्ज्वल अध्याय है जहाँ आस्था, अनुशासन, सादगी और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। छठ पूजा का यह महापर्व चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत “नहाय-खाय” से होती है जब व्रती पवित्र नदियों या जलाशयों में स्नान करके सात्विक भोजन करते हैं। यह दिन शुद्धता और आत्मसंयम का प्रतीक होता है। दूसरे दिन “खरना” मनाया जाता है, जिसमें व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ और चावल की खीर का प्रसाद बनाकर पूजा करते हैं। यह प्रसाद केवल व्रती नहीं, बल्कि परिवार और आस-पड़ोस के लोगों के साथ साझा किया जाता है जो सामाजिक एकता का संदेश देता है। तीसरे दिन “संध्या अर्घ्य” दिया जाता है, जब व्रती अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। दीपों की रोशनी और भक्तिमय गीतों से पूरा घाट आस्था से आलोकित हो उठता है। चौथे दिन “उषा अर्घ्य” के साथ उगते सूर्य की आराधना की जाती है, और इस अर्घ्य के साथ व्रत का समापन होता है। छठ पूजा का सबसे अनोखा पहलू इसका अनुशासन और सादगी है। यह पर्व दिखावे और तामझाम से परे है। व्रती नमक, लहसुन और प्याज रहित भोजन करते हैं, नए वस्त्र धारण करते हैं और पूरे समय आत्मसंयम का पालन करते हैं। पूजा में उपयोग की जाने वाली हर वस्तु प्राकृतिक होती है — मिट्टी के दीपक, बाँस की टोकरी, केले का पत्ता, गुड़, चावल, और गन्ना। इस प्रकार यह पर्व न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
छठ पूजा में महिलाओं की प्रमुख भूमिका होती है। वे अपने परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए यह कठिन और कठोर व्रत रखती हैं। बिना कुछ खाए-पिए कई घंटे जल में खड़े रहकर वे सूर्य देव और छठी मइया से आशीर्वाद मांगती हैं। उनका यह तप और श्रद्धा स्त्री शक्ति का अद्भुत प्रतीक बन जाता है। यह पर्व सामाजिक समरसता का भी सुंदर उदाहरण है। छठ पूजा में न कोई ऊँच-नीच होती है, न किसी प्रकार का भेदभाव। हर वर्ग और हर समुदाय के लोग एक साथ घाट पर खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। गाँवों से लेकर महानगरों तक, भारत से लेकर विदेशों तक — छठ पूजा समाज को एकता के सूत्र में बाँधती है।
आज जब जीवनशैली तेज़ी से बदल रही है और आधुनिकता ने परंपराओं को चुनौती दी है, तब भी छठ पूजा अपनी आत्मा के साथ जीवित है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय भी इस पर्व को उसी श्रद्धा और पारंपरिक विधि से मनाते हैं। प्रशासन द्वारा घाटों की सफाई, सुरक्षा और प्रकाश व्यवस्था से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। छठ पूजा केवल पूजा नहीं, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। सूर्य देव ऊर्जा, प्रकाश और जीवन के स्रोत हैं। जब व्रती सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता, बल्कि यह हमारे जीवन और पर्यावरण के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है। जल, वायु और सूर्य की उपासना के माध्यम से यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि मानव जीवन तभी संतुलित रह सकता है जब वह प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखे।
छठ पूजा के दौरान श्रद्धालुओं को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पूजा के स्थान की स्वच्छता और पवित्रता सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्लास्टिक या रासायनिक वस्तुओं का उपयोग न किया जाए, क्योंकि यह पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं। घाटों पर भीड़ के समय संयम और धैर्य बनाए रखना आवश्यक है। जलाशयों के किनारे सुरक्षा का ध्यान रखें, विशेष रूप से बच्चों और बुज़ुर्गों का। पूजा के दौरान प्रसाद बनाते समय शुद्धता का पालन करना चाहिए और किसी भी प्रकार के दिखावे से बचना चाहिए। छठ पूजा का सार ही सादगी और निष्ठा में निहित है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और अनुशासन में होती है। सूर्य देव की उपासना हमें यह प्रेरणा देती है कि हम जीवन में संतुलन, प्रकाश और सकारात्मकता बनाए रखें। छठी मइया की कृपा से हर घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे — यही इस पर्व का सच्चा संदेश है। छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन का उत्सव है — जहाँ श्रद्धा, सादगी, पर्यावरण और एकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति की उस जीवंत आत्मा को दर्शाता है जो समय के साथ और भी प्रखर होती जा रही है।

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