मुंबई । साहित्यकार से संवाद की श्रृंखला में 4 जुलाई को बिहार के बी.आर.अम्बेडकर विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष रहे प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो.महेन्द्र मधुकर से साक्षात्कार सम्पन्न हुआ। राजस्थान के भैरवलाल भास्कर ने सरस्वती वन्दना से इसे प्रारम्भ किया व उत्तर प्रदेश के प्रान्तीय महामन्त्री पवनपुत्र बादल ने आयोजन की दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए प्रास्ताविक भाषण प्रस्तुत किया।
प्रो. मधुकर ने अपनी जीवन यात्रा के विषय में बात शुरू करते हुए कहा कि अपरिचित पथ चुनौतियाँ देता है, आकर्षित करता है। उनके पिता पं. उपेन्द्र नाथ मिश्र ‘मंजुल’ हिन्दी-संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। अतः घर में बचपन से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास था और वे घर में होने वाली विद्वान वार्ता का आनन्द लेते थे।
वे प्रारम्भ से ही कविता लिखने लगे थे और गोपाल सिंह नेपाली की प्रेरणा से 18 वर्ष की अवस्था में ही मुम्बई से निकलने वाली पत्रिका ‘लहर’ में छपे। उनकी कविता सुनकर दिनकर जी ने गले लगाकर उन्हें ‘मधुकर’ नाम दिया था। गुरुजन की कमी की ओर दृष्टि नहीं डालनी चाहिए पर छात्र जीवन में पढ़ते हुए उन्होंने आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक में दो त्रुटियाँ देखकर उन्हें पत्र द्वारा सूचित किया तो उन्होंने काशी में मिलने को बुलाया। उन्होंने भूल स्वीकार कर अपनी एक पुस्तक भेंट की, जो अविस्मरणीय है।
2007 में बीमारी के बाद वे उपन्यास लेखन की दिशा में सक्रिय हुए और त्र्यंबकं यजामहे, लोपामुद्रा, बरहम बाबा की गाछी, वासवदत्ता, तस्मै देवाय उपन्यास लिखे। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि वे जब लिखते हैं तो लगता है कोई उनके कानों में बाँसुरी फूँक रहा है। वे चाहें जिस विधा में लिखें, मनुष्य की बात करते हैं। उनका मानना है कि सभी के प्रति समभाव होना चाहिए। वक्रतुण्ड, अनुर्वरा, देवराज इन्द्र : स्वर्ग का लम्पट उनके शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास हैं। प्रश्न काल से पूर्व उन्होंने जानकी वल्लभ शास्त्री को प्रिय रहा अपना एक प्रेम गीत ‘वे नयन’ भी सुनाया-
शब्दवेधी बाण जैसे चल रहे हैं
दो नयन दो दीप जैसे जल रहे हैं
अरविन्द भाटी, डॉ. महेश दिवाकर, मंजु रानी, हेमराज ठाकुर, राजकुमार सिसोदिया, डॉ. सर्वेश मिश्र, किरण पुरोहित, दिलबर कुमार ने उनसे प्रश्न किए तो वे बोले कि साहित्य में विचार ही चलता है। इसके माध्यम से जीवन मूल्यों की रचना होती है। जो बिना कुछ पढ़े ही लिख रहे हैं, एक कृति आते ही पुरस्कार को उत्सुक रहते हैं; यह प्रवृत्ति चिन्तनीय है। लेखक का सबसे बड़ा पुरस्कार पाठक है। लिखने के बाद पुनर्पाठ होना चाहिए। पहले प्रकाशन से पूर्व गुरुजन की राय ली जाती थी किन्तु अब के लेखक तो मानो स्वयं सिद्ध हैं। साहित्यकार चरित्र निर्माण हेतु, राष्ट्र कल्याण व मन की ऊर्जा के लिए साहित्य लिखे। उन्होंने कहा कि युवा साहित्यकारों पर पूर्व पीढ़ी के साहित्यकार द्वारा लिखे गए साहित्य का भार है। वे जिस भी क्षेत्र विशेष में लिख रहे हैं, उस विधा विशेष के साहित्य को अवश्य पढ़ें। सभी विधाओं का उद्देश्य व्यक्ति के चित्त का विस्तार व परिष्कार करना है। वे स्वयं को कर्म प्रधान व शक्ति सम्पन्न बनाएँ। लेखक अपने विचारों से ऊँचा उठता जाएगा।
हरियाणा प्रान्त की ओर से डॉ. पूर्णमल गौड़ (मार्गदर्शक) डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी (अध्यक्ष), रमेशचन्द्र शर्मा (का. अध्यक्ष), डॉ. योगेश वासिष्ठ (महामन्त्री) हरीन्द्र यादव (कोषाध्यक्ष), नवरत्न (साहित्य मन्त्री), महेन्द्र सिंगला (पलवल), डॉ. शशि धमीजा (अम्बाला) कृष्ण लता यादव,(गुरुग्राम), दर्शन शर्मा (रेवाड़ी) आदि ने सहभागिता की।
राष्ट्रीय संगठन मन्त्री श्रीधर पराड़कर,महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र सहित प्रवीण आर्य,प्रेम शेखर,रीता सिंह,नीलम राठी, सुनीता बग्गा,भरत ठाकोर, डॉ. संजय पंकज, जनार्दन यादव, रवीन्द्र शाहबादी, पंकज सरकार, केशव शर्मा, विनय शर्मा दीप, शुभेन्दु अमिताभ,बलराम तिवारी, ममता जोशी,सरला पांड्या, मिलिन्द नेवासकर,रमाकान्त मन्त्री,राजेन्द्र शर्मा,मुकेश बेरवाल, करण सिंह बेनीवाल,अभिमन्यु सिंह आदि की गूगल मीट पर उपस्थिति रही तो अनेक श्रोता फ़ेसबुक पर भी सहभागी रहे।
डॉ. अखिलेश शर्मा द्वारा संचालित इस कार्यक्रम की समाप्ति पर राष्ट्रीय मन्त्री डॉ. दिनेश प्रताप सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। - प्रस्तुति : डॉ. योगेश वासिष्ठ (महामन्त्री, हरियाणा प्रान्त) एवं यह खबर मुंबई से कवि,पत्रकार विनय शर्मा दीप ने दी।
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