मुंबई। उत्तर प्रदेश के चुनावी संग्राम में बड़े से बड़े मोहरे फेल हो जाते हैं। इस बार के चुनाव में ऊ.प्र. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। पिछला चुनाव जहां भाजपा के लिए एकतरफा जीत वाला साबित हुआ था, इस बार यह दो कोणीय होता नजर आ रहा है, जबकि मौजूदा राजनीतिक हालात में तीन कोणीय या बहुकोणीय चुनाव भाजपा के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता था। लेकिन अभी तक की जो स्थिति है, उसमें भाजपा-सपा आमने-सामने दिख रहे हैं। सपा का जातीय समीकरण के ध्रुवीकरण का प्रयास है, तो भाजपा के पास सही अर्थों में विकास और सुशासन के साथ अयोध्या, काशी और मथुरा जैसी इतिहास बनाती घटनाएं हैं। बात चुंकि अब युवाओं और पढ़ें लिखो के बीच आ गई है। भाजपा के साथ युवा शक्ति का झुकाव थोड़ा ज्यादा है। हमारे युवा इस चुनाव रुपी नैया के खेवनहार हैं।उत्तर प्रदेश के बारे इस चुनाव में लगभग 15.02 करोड़ मतदाता अपना वोट डालेंगे। इनमें से 18 से 29 साल के करीब 32.8% युवा हैं। इनमें भी 19.89 लाख ऐसे हैं, जिनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। इस बार पिछली बारकी तुलना में युवा वोटर्स की संख्या में छह प्रतिशत की स्वाभाविक रूप से बढ़ोतरी हुई है। इन आंकड़ों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में युवाओं की अहमियत क्या है? समझी जा सकती है। इसी वजह से युवा राजनीति के केंद्र में हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर युवाओं का क्या मूड है? वे राजनीतिक दलों से क्या चाहते हैं? चुनाव के लिए युवाओं के मुद्दे क्या हैं? मैने 17 जनवरी से 6 फ़रवरी 2022 तक उत्तर प्रदेश का दौरा किया। तमाम युवाओं से और अन्य मतदाताओं से बातचीत की जो बात सामने आई वह यह है कि - ज्यादातर युवाओं ने विकास के मुद्दे पर वर्तमान सरकार की तारीफ की है। उनका कहना था कि मौजूदा सरकार ने सड़कों, हाईवे, फ्लाईओवर, शहर की स्वच्छता, सौंदर्यीकरण को लेकर काफी काम किया है। कई जगहों पर सड़कें चौड़ी हुई हैं, साफ-सफाई की व्यवस्था भी पहले के मुकाबले बेहतर हुई है। हालांकि, कुछ युवा ऐसे भी थे, जो सड़कों को लेकर नाराज दिखे। ऐसे युवाओं ने अपने आसपास की कुछ सड़कों का नाम बताकर वहां की कमियों को उजागर किया। कानून व्यवस्था को लेकर ज्यादातर युवाओं ने पहले के मुकाबले बेहतर बताया। युवाओं का कहना है कि संगठित अपराध पर लगाम लगाने में सरकार कामयाब रही है। चोरी, छिनैती, लूट जैसी घटनाएं कम हुई हैं। अब दंगे नहीं होते हैं। महिला सुरक्षा के मामले में भी सरकार ने अच्छा काम किया है। महिलाएं अब बेखौफ होकर घर से कभी भी निकल सकती हैं। वहीं, कुछ युवाओं ने हाथरस, उन्नाव, पीलीभीत में रेप की घटनाओं का जिक्र करके भाजपा सरकार पर निशाना भी साधा। उन्होंने कहा कि हालात जस के तस हैं ।उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल ही माना जा रहा है, जो सही भी है । अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण, वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का बनना भी बड़ा मुद्दा है। वहीं चुनाव के दौरान मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि पर भी चर्चा जोरों पर है। अमित शाह ने वहां का दौरा कर उसे और बड़ा बना दिया है। कोरोना महामारी में मैनेजमेंट, किसान आंदोलन, पुलिस कार्रवाई जैसे मुद्दों पर भी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक बयानबाजी जोरों पर है। देर-सबेर जातीय और धार्मिक समीकरणों को लेकर भी चुनावी मुद्दा उभरने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। आजकल चुनाव में इसकी अहम भूमिका हो गई है।
18 मंडल और 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश में देश की सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। पश्चिमी यूपी जाटलैंड, हरित प्रदेश मध्य यूपी में बुंदेलखंड, अवध के अलावा पूर्वांचल जैसे कई क्षेत्रीय विविधताओं वाले राज्य में कई बार बंटवारे की बात भी राजनीति में जोर पकड़ती रहती है। तमाम तरह की भिन्नताओं के बावजूद उत्तराखंड के अलग होने के बाद इस ओर कोई बड़ी कवायद होती नहीं दिखी। मगर राजनीतिक वर्चस्व के लिए इन क्षेत्रों में संतुलन सबसे बड़ी जरूरत बताई जाती है अलग- अलग सामाजिक वोट बैंक का इन अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभाव है। जैसे जाट और दलितों का खासकर पश्चिमी यूपी में ज्यादा असर है, तो पूर्वांचल में सवर्णों की ताकत बड़ी बताई जाती है। मध्य और सीमावर्ती यूपी में मुसलमानों के वोट को निर्णायक बताया जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों के मुद्दे भी भिन्न होते हैं। हरित प्रदेश में गन्ना किसानों को साधना चुनौती मानी जाती है। योगी जी, अखिलेश, प्रियंका और मायावती में कौन पसंद? : इस सवाल के जवाब में 90 फीसदी युवाओं ने कहा कि इस चुनाव में लड़ाई अखिलेश और योगी आदित्यनाथ के बीच है। इनमें भी 50 प्रतिशत से अधिक युवाओं का कहना है कि रोजगार के मामले में अखिलेश सरकार अच्छी थी, परंतु जातीयता में डूबी थी। उस समय जो नौकरियां दी गई थी वह सही तरीके से नहीं दी गई थी। जबकि विकास के मामले में योगी आदित्यनाथ उनकी पहली पसंद हैं, वे मानते हैं कि इस माने में यह सर्वश्रेष्ठ सरकार है। वहीं, 50 प्रतिशत से अधिक युवा ऐसे हैं, जिन्होंने कहा कि भले ही रोजगार के मामले में योगी आदित्यनाथ थोड़े कम रहे हैं, लेकिन उनके अलावा फिलहाल कोई बेहतर विकल्प है ही नहीं। ऐसे युवाओं ने यह भी कहा कि आने वाले समय में योगीजी बेहतर काम कर सकते हैं उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में जातीयता की आंधी गली से दूर रहने वाले, मेहनत करने वाले, कुछ युवा ऐसे भी रहे, जिन्होंने कहा कि रोजगार की व्यवस्था ठीक है। तर्क दिया कि जिन युवाओं में काबिलियत है, उन्हें योगी आदित्यनाथ के समय में रोजगार मिल रहा है। नौकरियों में पारदर्शिता है। अब जातीयता मेरिट नहीं है, बल्कि काबिलियत के बल पर नौकरी मिल रही है। वहीं, दूसरी ओर कई जगह युवाओं ने भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक होने का भी सवाल उठाया। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास योजनाओं के शिलान्यास-उद्घाटन के बहाने सबसे ज्यादा चुनावी दौरे हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव परिवर्तन रथ पर सवार होकर पूरे प्रदेश में 'बाइस में बाईसाइकिल' के नारे के तहत पूरा प्रदेश मथ रहे हैं। बसपा खेमे में थोड़ी हलचलहुई है पर अभी खामोशी ही है।सभी दल अपने अपने वोट बैंक की बात कर रहे हैं। ब्राम्हण वोटर पर सबकी निगाहें हैं। कोई परशुराम के नाम पर, तो कोई अन्य बहाने से ब्राम्हण वोटर को अपनी ओर खींच रहा है। मतलब ब्राम्हण वोटर की हालत सच्चाई से दूर ढोल नगाड़े जैसी हो गई है कि जो जहां चाहे वहां खड़ा कर दे। जबकि सच्चाई कुछ और है।
इसी बीच मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया है कि इस बार 1250 मतदाताओं पर एक बूथ बनाया गया है। पिछले चुनाव की तुलना में 16 फीसदी बूथ बढ़ गए हैं।
इस तरह उत्तर प्रदेश चुनाव इस समय बहुत ही रोमांचक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी अखाड़े में कूद पड़े हैं । परिणाम तो चुनाव के बाद ही निश्चित होंगे, लेकिन भारतीय जनता पार्टी लाभ की स्थिति में बनी हुई है यह स्पष्ट हो रहा है।
फिलहाल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत झोंक दी है। बसपा प्रमुख मायावती ने देर से ही सही लेकिन अपने पत्ते खोल दिए हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव सर्वेक्षण में लगे सूत्रों का कहना है कि जितना कांग्रेस मजबूती से लड़ेगी, उतना भाजपा का नुकसान होगा। जितना बसपा मजबूती से लड़ेगी, इसबार उतना नुकसान समाजवादी पार्टी का बढ़ेगा। इसके बीच में एक समीकरण और काम करेगा। इस आधार पर यह कहना मुश्किल है कि भाजपा की सीटें 300 के पार या इसके आस-पास आ सकेंगी। यह तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए दिया जाने वाला मंत्र है। एक चुनाव प्रचार रणनीतिकार का कहना है कि अभी तो प्रधानमंत्री मोदी का खुलकर मैदान में उतरना बाकी है। यदि वह हर सीट पर भाजपा का 100 वोट भी बढ़ा देंगे तो 30-35 सीटें वैसे ही बढ़ जाएंगी। वैसे इस चुनाव में सभी तरह के चुनावी फार्मूले प्रयोग किए जा रहे हैं। नेता अपने टिकट के लिए खुद का राजनीतिक चीरहरण करवा रहे हैं। द्रोपती के लिए तो कृष्ण थे। यहां तो मामा कंस की दावपेंच ही सर्वोपरि है। इस चुनाव में सबकुछ हो रहा है अगर कुछ नहीं है तो वह है राजनीति?
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