नफ़रत के ज्वालामुखी से हैवानियत का लावा लगातार पिघल रहा है..!
धर्मांध करतूतों का उन्मादी अजगर सामाजिक सद्भाव को निगल रहा है..!
मणिपुर जल रहा है..!
जल रही हैं, मणिपुर की बरसों पुरानी आपसी सद्भावना की बुनियादें,
जल रही हैं, विभिन्न समुदायों के बीच हँसी-ख़ुशी साथ रहने की मीठी यादें,
और जल कर राख हो रहे हैं मणिपुरी ऑंखों के अरमान,
न जाने कब लौटेगा गौरवशाली मणिपुर का पुराना सम्मान..?
पुराने गिले-शिकवे मिटा कर क्या फिर से साथ रहेंगे मैतेई, कुकी और नगा समाज के हमराह,
आपसी भरोसा कम हो गया है और हर कहीं नाउम्मीदी है बेपनाह,
राजनीतिक षडयंत्रों के शिकंजे में छटपटाता सामाजिक ताना-बाना मुक्ति के लिए मचल रहा है..!
मणिपुर जल रहा है..!
रचयिता* :- गजानन महतपुरकर,
कवि, साहित्यकार, स्वतंत्र पत्रकार, मंच संचालक एवं सदस्य - महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई
मोबाइल नं. 8369957684
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