प्रभु श्रीराम सनातन परंपरा का अनुसरण करने वाले गम्भीर व्यक्तित्व हैं : डॉ. भीमराय मेत्री
मुंबई: अयोध्या में 22 जनवरी को आयोजित प्रभु श्रीराम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के भव्य समारोह के आलोक में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में विश्वविद्यालय एवं महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में "‘सनातन परम्परा और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’" विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 22 जनवरी, 2024 को आयोजित की गई।
इस गरिमापूर्ण संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने कहा कि सनातन परम्परा का अर्थ है ऐसी परम्परा, जो कभी समाप्त नहीं होती हो, जो लोक मंगल का विधान करती हो और लोक कल्याण चाहती हो। उन्होंने कहा कि ऐसी सनातन परम्परा को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ और उस सनातन परम्परा में रहने के लिए मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूँ। सनातन परम्परा हज़ारों वर्षों के तप से निकली परम्परा है, जिसमें सब कुछ पावन ही पावन है। उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम उस सनातन परम्परा के मार्ग का अनुसरण करने वाले गम्भीर व्यक्तित्व हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम लोक उद्धारक, पतित पावन, भक्त वत्सल और कृपानिधान है। उनमें उदारता कूट-कूट कर भरी है। वे धैर्य के पर्वत हैं, जो असामान्य परिस्थिति में भी विचलित होने वाले नहीं हैं। वे त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। वे दया, करुणा, क्षमा आदि के साथ दीनों के उद्धारक के रूप जाने जाते हैं और समरसता में विश्वास करने वाले हैं। कुलपति डॉ. मेत्री ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जीवन में अच्छे चरित्र पर सर्वाधिक बल देते हैं और लोक मर्यादा को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. धर्वेश कठेरिया भी मंच पर उपस्थित थे। विशिष्ट वक्ता के रूप में ऑनलाइन सम्बोधित करते हुए मुंबई विश्वविद्यालय के प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि आचार्य तुलसीदास, भवभूति, संत नामदेव और संत कबीर ने राम के उदात्त गुणों का वर्णन अपने काव्य में किया है। संत कबीर ने अपने दोहे में राम नाम की खेती करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि आज विश्व में राम सर्वत्र व्याप्त हैं और राम का लोक कल्याणकारी रूप सर्वत्र दिखाई दे रहा है। क्वांगटोंग विश्वविद्यालय, चीन के डॉ. विवेकमणि त्रिपाठी ने कहा कि राम के बिना सनातन संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। राम लोकमंगल की कामना का भी नाम हैं। वाराणसी के प्रो. श्रीनिवास पांडेय ने कहा कि राम का व्यक्तित्व विराट है। वे जड़ व चेतना में विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि हमें राम के दर्शन पर गम्भीरता से काम करने की आवश्यकता है। विषय प्रवर्तन करते हुए अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि तुलसी के राम में आदि से अंत तक मर्यादा जुड़ी हुई है। राम का सम्पूर्ण जीवन मर्यादा का और अव्यर्थ लक्ष्य एवं अव्यर्थ वाक् का साक्षी है। साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि राम सनातन के साक्षात स्वरूप हैं। उनमें शक्ति, शील और सौंदर्य विद्यमान हैं। संगोष्ठी का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन एवं प्रभु श्री राम की प्रतिमा पर पुष्पार्पण कर किया गया। हिंदी साहित्य विभाग की प्रो. प्रीति सागर ने संचालन तथा तुलनात्मक साहित्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामानुज अस्थाना ने धन्यवाद ज्ञापित किया। मंगलाचरण संस्कृत विभाग के शोध छात्र साहिबुदेव शर्मा द्वारा किया गया। राष्ट्रगान से कार्यक्रम का समापन किया गया। इस दौरान अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष, अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर दीपोत्सव और सुंदरकाण्ड के पाठ का आयोजन भी किया गया।
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