133 - वसई विधानसभा क्षेत्र का हाल बेहाल

 

उम्मीदवारों से ज्यादा 'नोटा' को मिल सकते हैं वोट

नालासोपारा (संवाददाता)। वर्तमान विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में-चर्चित 133- वसई विधान सभा क्षेत्र में उम्मीदवारी अर्ज के परीक्षण व नाम वापसी के बाद जो भी उम्मीदवार बचे हैं, उनमें प्रमुखतः तीन ही उम्मीदवारों- हितेन्द्र विष्णु ठाकुर (बहुजन विकास आघाड़ी (बविआ), श्रीमती स्नेहा प्रेमनाथ दुबे (भारतीय जनता पार्टी, भाजपा) महायुती की तथा महा विकास आघाड़ी (मविआ) गठबंधन की पार्टी कांग्रेस से विजय पाटिल के मध्य त्रिकोणीय चुनावी संघर्ष का अनुमान लगाया जा रहा है। शेष उम्मीदवारों को वोट कटवा उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा, जिनका चुनाव में कोई खास असर पड़ता नहीं दिखाई पड़ता है। वसई विधान सभा क्षेत्र में यदि विकास की चर्चा की जाय तो वर्तमान में जो कुछ भी विकास हुआ है, उसमें 75% पंचायत काल का ही रहा है। हलांकि इस विधानसभा क्षेत्र का अधिकांश व लम्बा पाश्चमी भू-भाग समुद्री किनारा है, जिससे कि जलजमाव बाढ़ का खतरा कम है। समुद्री किनारे के गांव में अधिकांश मच्छीमार समाज के कोली- कुछ गांवों में आदिवासी समाज के लोग तथा शेष किसान हैं। इस वि.स. क्षेत्र के पूर्वी हिस्सों में बेपनाह अवैध निर्माण हुए हैं। मात्र विल्डिंगों व भीड़ के बढ़ने को विकास नहीं कहा जाता। अब आने वाले नवनिर्वाचित विधायक के सामने विकास के निर्धारित मानदण्डों के अनुरूप ही विकास करने की चुनौती होगी।
विगत लगभग 5-6 पंचवर्षीय योजनाओं में विधायक चुने जाने वाले विधायक हितेन्द्र ठाकुर बविआ के एक सशक्त उम्मीदवार माने जा रहे हैं तथा उनकी लोकप्रियता पर भी. कोई शंका / आशंका किया जाना उपयुक्त नहीं है। क्षेत्र में उनके प्रशंसकों की कोई कमी नहीं है। उन्हें एक प्रबल दावेदार के रूप में माना जा रहा है। सबसे उल्लेखनीय यह है कि उनका चुनाव चिन्ह 'शिट्टी है। उनका आरंभिक चुनाव प्रचार भले ही धीमा रहा हो किन्तु मतदान तिथि के नजदीक आते ही पूरे विधान सभा क्षेत्र में "शिट्टी' की ही गूंज सुनाई पड़ने लगती है। हितेन्द्र ठाकुर एक लम्बे समय से यहां की सीट पर काबिज़ रहे हैं तथा उन्हें क्षेत्र की जन संख्या की रग-रग से वाकिफ बताया जाता है।


स्नेहा प्रेमनाथ दुबे को नहीं जानते 95% मतदाता 

दूसरे पक्ष की उम्मीदवार महायुति-(राकांपा), शिवसेना (शिन्दे व भाजपा) की हैं जो भाजपा के चुनाव चिन्ह 'कमल' के साथ,चुनावी मैदान में है। भाजपा देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। लोगों का कहना है कि भाजपा की उम्मीदवार स्नेहा प्रेमनाथ दुबे पहली बार चुनावी मैदान में हैं तथा उन्हें 95% मतदाता जानते तक नहीं। कहना अनुचित नहीं होगा कि स्नेहा दुबे को परिचय दुबे इस्टेट (दुबे परिवार) की बहू या पूर्व विधायक विवेक पंडित की बेटी के रूप में ही दिया जाना उनकी मज़बूरी है कि लोग उनका परिचय जान सकें। क्योंकि स्नेहा दुबे का स्वयं की कोई भी सामाजिक या राजनैतिक उपलब्धि नहीं है। यह है कि दुबे परिवार व विवेक पंडित का भी जनता पर कोई खास प्रभाव नहीं रह गया है। बस यह कहा जा सकता है कि सौभाग्य से वह केन्द्र व कई राज्यों में सत्तासीन भाजपा की उम्मीदवार है। किन्तु दिक्कत तो यह है कि अपनी-अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते भाजपा वसई विरार जिला ईकाई में सर्वाधिक अंतर कलह मानी जा रही है। वसई-विरार भाजपा ईकाई के नेता एक-दूसरे पर आपराधिक आरोप लगाने का षड्यंत्र करने से रंचमात्र भी पीछे नहीं हटते ताकि उनका कोई प्रतियोगी न रहे, किंत संकीर्ण सोच के कारण वे यह नहीं सोचते की उनकी अंतर्कलह का दुष्परिणाम भाजपा की लुटीया डुबा सकता है। 

मात्र चुनाव के समय में क्षेत्र में दिखते हैं विजय पाटिल 

तीसरे मविआ गठबंधन के समर्थित उम्मीदवार विजय पाटिल (कांग्रेस) हैं, जो विगत पंच वर्षीय योजना में भी अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं। विजय पाटिल भी मात्र चुनाव के समय ही क्षेत्र में आते जाते हैं, लिहाजा एकवार चुनाव हार जाने के उपरांत भी वह दुबारा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। एक सामाजिक या राज नैतिक कार्यकर्ता के रूप में न माने जाने के कारण विजय पाटिल को मात्र 15-20 प्रतिशत जनता ही जानती है। पिछली बार भी "आधी के आम"' की तरह ही इन्हें काफी वोट मिल गये थे, किंतु हर बार वैसा ही चमत्कार होगा, ऐसी संभावना बहुत कम है।
 'नोटा' की तरफ बढ़ रहा मतदाताओं का झुकाव

मतदाताओं के अनुसार उक्त तीनों ही उम्मीदवारों में चुने जाने व क्षेत्र का विकास करने का माद्‌दा नहीं है। यही कारण है कि अनेक मतदाताओं का झुकाव 'नोटा' की तरफ जा रहा है। किंतु चुनाव तो होगा ही, इस त्रिकोणीय संघर्ष में कौन बाजी मारेगा यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा किंतु देखा जा रहा है कि उपरोक्त तीनों ही उम्मीदवार मतदाताओं की पसन्द नहीं है। हालांकि पसन्द करने का नाटक करना, मतदाताओं की विवशता ही है, क्योंकि उम्मीदवारों का चुनाव मतदाता तो करते नहीं हैं।

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