यथा नाम तथा गुण वाले रामचरित्र रामभजन सिंह (आर. आर. सिंह) ने मुंबई के महापौर तक की यात्रा मुलुंड से होकर तय की। संपूर्ण मुंबई के हर क्षेत्र की जानकारी रखने वाले महापौर साहब के मष्तिष्क में मुलुंड के विकास का नक्शा तैयार था। इसी वज़ह से उन्हें मुलुंड का विकास पुरुष कहा जाता है। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में तो उनके परिवार का कोई शानी नहीं है। वे देश ही नहीं अपितु विदेश तक अपनी शिक्षा का परचम लहरा चुके है।
युवावस्था में ही वे सपनों और दृढ़ संकल्प के साथ 1954 में बड़े भाई राम कृपाल सिंह के पास मुलुंड,मुंबई पहुंचे। शुरुआत में, उन्होंने मुंबई के उपनगर मुलुंड में दुग्ध व्यवसायी के रूप में काम किया, इसने उनके अंदर शहर के गरीबों, शोषितों और आम आदमी की समस्याओं की गहरी समझ को जन्म दिया। प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी से संपर्क किया। पंडित नेहरू जी ने उन्हें मुंबई कांग्रेस में सम्मिलित कर, मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष को कहा कि इन्हें पार्टी से संबंधित कार्य करने का अवसर दिया जाय। साथ ही पार्टी से संबंधित पुस्तकें भी भेजी। इसी दौरान, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी व समाजसेवी स्वर्गीय श्री एस. के. पाटिल के साथ जुड़कर उन्होंने समाजसेवा कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू किया। उनकी मेहनत, लगन, कर्तव्यनिष्ठा व समर्पण भाव से प्रभावित होकर सन् 1969 में महाराष्ट्र शासन द्वारा उन्हें जस्टिस ऑफ पीस (Justice of peace) बनाया गया। तब उन्होंने गरीब, पीडि़त और जरूरतमंद जनता की सेवा आरंभ की।
कालांतर में बैरिस्टर रजनी पटेल ने उनकी कार्यक्षमता को पहचाना। उनको राजनीति के क्षेत्र में मौका दिया। सन् 1973 में मुलुंड क्षेत्र से नगर सेवक का टिकट दिया गया। वे बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव में नगरसेवक के रूप में चुने गए। यह उनकी लंबी और समर्पित सेवा की शुरुआत थी। उनकी समर्पित सेवावृत्ति के परिणामस्वरूप वे लगातार 7 बार नगरसेवक के रूप में चुने गये। कई वर्षों तक उन्होंने नगरसेवक के रूप में कार्य किया, शहर के निवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहे और महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रमुख उत्तर भारतीय चेहरा बन गए।
महापौर के रूप में उनकी सेवाएं अविस्मरणीय हैं। उन्होंने "हरित मुंबई स्वच्छ मुंबई" का नारा देकर शहर के सौंदर्यीकरण और विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त किया। वे हमेशा कहा करते थे- “मान-सम्मान और शॉल-श्रीफल पाने की ख्वाहिश नहीं है मुझे, आप मुझे चंदा दीजिए जिससे मैं जरूरतमंदों की सहायता कर सकूं।”
1973 से 2003 के बीच, उन्होंने अपने कार्यकाल में मुंबई के उपनगर मुलुंड के विकास की नींव रखी और विभिन्न वैधानिक समितियों में रहते हुए मुंबई शहर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो शहर के शासन में महत्वपूर्ण निर्णयों की देखरेख करती थी। उन्होंने मुंबई के उपनगर मुलुंड के विकास की नींव रखी। उन्हीं के अथक परिश्रम का फल है कि आज मुलुंड को ‘सबर्ब की रानी’ कहा जाता है। उनके द्वारा किये गये कार्यों को सूचीबद्ध करना आसान तो नहीं, कुछ झल्कियां इस प्रकार हैं- कालीदास हॉल, प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी क्रीड़ा संकुल, जवाहर लाल नेहरु रोड, जय हनुमान व्यायाम शाला, देवी दयाल बस टर्मिनल, देवी दयाल गार्डन, हनुमान पाडा पानी सप्लाय, आंबेडकर गार्डन, महाराष्ट्र जिल्हा ग्रंथालय, वैशाली नगर बस स्टॉप एवं शिवाजी चौक गार्डन इत्यादि।
पूर्व मेयर सिंह जी का समाज सेवा के प्रति भी गहरा लगाव था। उन्होंने BEST स्वास्थ्य समितियों के सदस्य के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। गटर, मीटर और वाटर की सुविधाओं की ओर ठोस कदम उठाकर गरीब व जरुरतमंदों के जीवन में रोशनी लोने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है, साथ ही शहर की बढ़ती आबादी, बुनियादी ढांचे की जरूरतों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का समाधान करने के लिए काम किया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आर. आर. सिंह एक कुशल वक्ता, जनसेवक और विद्वान भी थे। उनकी विद्वता और गहन ज्ञान के कारण उन्हें "मुम्बई महानगरपालिका का चलता-फिरता विश्वकोश" (encyclopaedia) कहा जाता था। महापौर रहते हुए उनके बजट कार्यक्रमों में वे अत्यंत अभ्यासपूर्ण और प्रभावशाली बजटीय संभाषण प्रस्तुत करते, जिसे न केवल राजनीतिक पक्ष के लोग, बल्कि आम जनता और अधिकारी वर्ग भी एकाग्रचित्त होकर सुनते थे। 26 घंटे तक लगातार संभाषण देने का उनका रिकॉर्ड आज भी अद्वितीय है। उनका जीवन केवल संघर्षों और सफलताओं का सफर नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि समर्पण और मेहनत से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
मुंबई जैसे बड़े शहर में उन्होंने सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि कला, क्रीड़ा और शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ही है कि वे अनेक शिक्षा संस्थानों की स्थापना करते रहे जैसे- चाचा नेहरू डिग्री कॉलेज, भिवंडी व माजीवाडा, दयानंद वैदिक विद्यालय, राजीव गांधी हाई स्कूल, नलिनीबाई दौड़े विद्यालय एवं आर. आर. एज्युकेशनल ट्रस्ट जिसमें मराठी व अंग्रेजी माध्यम स्कूल, जूनियर कॉलेज, हॉटल मैनेजमेंट, डी. एड. व बी. एड. कॉलेज (NAAC ACCREDITED) चल रहे हैं। उनके इन प्रयासों ने न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा दिया, बल्कि इसे हर वर्ग के बच्चों के लिए सुलभ बनाया।
उन्होंने बी.एड. कॉलेज की स्थापना कर शिक्षक-प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी एक नई राह खोली। यह कॉलेज न केवल शिक्षकों को उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्रदान करता है, बल्कि शिक्षकों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम भी बना है। आर.आर. सिंह का विश्वास था कि शिक्षा ही समाज की प्रगति की कुंजी है। अपने अथक प्रयासों से यह सुनिश्चित किया कि वंचित वर्गों के बच्चे भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें। मुलुंड में स्थापित उनका आर. आर. एजुकेशनल ट्रस्ट इस दिशा में उनकी दूरदर्शिता और प्रयासों का प्रतीक है।
उन्हें "विकास पुरुष" और "जन उद्धारक" कहकर सम्मानित करना पूरी तरह से उचित है। उनके द्वारा लगाए गए शिक्षा के इस गुलशन की महक आज न सिर्फ हर कोने में महसूस की जा रही है अपतिु शिक्षा के क्षेत्र में एक नई ऊर्जा और दिशा का संचार भी कर रही है। उनके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य सराहनीय है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चे समर्पण और सेवा से समाज को नयी दिशा देना संभव है। ऐसे दूरदर्शी नेतृत्व और समर्पित सेवा के प्रतीक, विकास पुरुष व प्रेरणास्रोत मेयर आर.आर. सिंह जी को कोटि-कोटि नमन।
प्रस्तुति :- *शशिकला पटेल*
(सहायक प्राध्यापक, आर. आर.
बी एड कॉलेज, मुंबई )
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