यूपी में सुनियोजित तरीके से फैलाया जा रहा नफरत का जहर–बाबा दुबे



जौनपुर। देश को शांति, अहिंसा, प्रेम और भाईचारा का संदेश देने वाला उत्तर प्रदेश, राजनीतिक विष वमन के चलते आज अपने मूल सिद्धांतों से दूर होता जा रहा है। वोट बैंक की लालच में एक सुनियोजित तरीके से घृणा और नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। सदियों से भाईचारे के साथ रहने वाले लोगों को आपस में ही लड़ाने की साजिश चल रही है। अगर हमने बुद्धिमानी से काम नहीं लिया, तो आज की राजनीति हमें एक ऐसी गर्त में धकेल देगी, यहां से निकल कर बाहर आना आसान नहीं होगा। बदलापुर के पूर्व विधायक ओमप्रकाश दुबे उर्फ बाबा दुबे ने वरिष्ठ पत्रकार शिवपूजन पांडे के साथ की गई बातचीत में उपरोक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदेश में अब सिर्फ नफरत की राजनीति ही चलेगी। महाराष्ट्र में शुरू हुआ औरंगज़ेब एक सोची समझी राजनीति के तहत उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पहुंच गया। यहां उसका रूपांतरण अगड़े बनाम पिछड़ों और अगड़े बनाम दलितों में कर दिया गया। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने महाराष्ट्र में हिंदू मुसलमान की राजनीति खड़ी की तो रामजीलाल सुमन ने इतिहास के पन्ने कुरेदकर उसे अगड़े पिछड़ों और अगड़े दलितों के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने का प्रयास किया। पीडीए का समीकरण लेकर चल रही समाजवादी पार्टी को तो इसी तरह के मुद्दे चाहिए था। उत्तर प्रदेश में हिंदू मुसलमान से भाजपा को ज्यादा फायदा मिलता देख सपा ने अपने विधायक रामजीलाल सुमन द्वारा राणा सांगा का मुद्दा उठवाकर अगड़ों और पिछड़ों के बीच, तथा रामजीलाल सुमन के घर हुए करणी सेना के हमले को लेकर ,अगड़ों और दलितों के बीच जहर घोलने का काम कर रही है। जहां भाजपा ने हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की दीवार खड़ी की, वहीं समाजवादी पार्टी ने दो कदम आगे जाकर पीडीए की गंदी राजनीति खेल कर समाज को बांटने का प्रयास किया। दोनों स्थितियों में खामियाजा देश और देशवासियों को ही भुगतना पड़ रहा है। काश! राजनीतिक दल इससे ऊपर उठकर, बढ़ते भ्रष्टाचार और महंगाई को रोकने तथा युवाओं को रोजगार देने पर ध्यान केंद्रित करते, जिससे देश की आम जनता और युवाओं को फायदा मिलता। नफरत की भाषा छोड़कर अमन और शांति की बात करते तो इंसानियत को मरना नहीं पड़ता।

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