डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार
आज का दिन है स्नेह का, अपनत्व का,आज है भाई दूज,वह पर्व जो भाई और बहन के प्रेम का अमर प्रतीक है।
रक्षाबंधन जहाँ रक्षा की डोरी का पर्व है,
वहीं भाई दूज — आत्मा की गहराई का स्पंदन है।
यह केवल तिलक और मिठाई का त्यौहार नहीं,
यह भावनाओं का वह बंधन है,
जो हर जन्म में साथ चलता है।
कहते हैं इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे।
बहन ने किया तिलक, दिया आदर और अपनत्व का उपहार।
यमराज ने प्रसन्न होकर कहा —
“जो बहन इस दिन अपने भाई का तिलक करेगी,
उसका भाई दीर्घायु और सुखी रहेगा।”
तभी से आरंभ हुआ — यह भाई दूज का पावन पर्व।
और इसी दिन —
जैन इतिहास में हुआ एक महान कल्याणक।
इस दिन प्रभु महावीर स्वामी का निर्वाण कल्याणक हुआ।
जब उन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त किया,
तब उनके बड़े भाई नंदिवर्धन अत्यंत व्यथित हुए।
वियोग का सागर उमड़ आया उनके हृदय में।
तभी बहन सुदर्शना आगे बढ़ीं —
उन्होंने कहा,
“भैया, मत शोक करो। प्रभु का यह वियोग नहीं, यह तो विजय है,विजय आत्मा की, विजय सत्य की, विजय मुक्ति की।उनके मधुर और संयमित वचनों ने
भाई के मन का अंधकार मिटा दिया। स्नेह और धर्म का यह दृश्य
भाई दूज की आत्मा बन गया।
इस दिन हमें यह सीख मिलती है —
कि भाई-बहन का रिश्ता केवल शरीर का नहीं,
यह आत्मा का संग है। ना सोने-चाँदी से, ना उपहारों से,
यह रिश्ता तौला जा सकता है।
यह तो वह बंधन है,जहाँ बहन की दुआ भाई की ढाल बनती है,
और भाई का स्नेह बहन की मुस्कान।
तो आओ, इस भाई दूज पर
हम भी वही प्रण लें कि अपने रिश्तों को धन से नहीं, धर्म से सजाएँ।
प्रेम के इस अमर दीप को जलाए रखें,क्योंकि यही दीप जीवन को प्रकाशित करता है।
भाई दूज का सच्चा संदेश है —
“प्रेम का मूल्य नहीं होता, उसका अनुभव होता है।”
जय प्रेम, जय अपनत्व,
जय प्रभु महावीर,
और जय इस पवित्र भाई दूज पर्व की।
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