मेरे हीरो, मेरे पापा



–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

वह नन्ही सी परी है, सपनों की रानी,
आसमान को छूने की ठानी।
सीढ़ी दर सीढ़ी चलती जाती,
हौसलों की लौ से राह सजाती।

शिखर करीब है, कदमों में कंपकंपी,
मजबूरियां खींचें, दिल में धड़कन गहरी।
एक ओर मंज़िल चमके सोने सी,
एक ओर बंधन, जंजीरें कोने-कोने सी।

रुक कर पूछे खुद से बेसाख़्ता,
“जाऊं किधर, दिल करे क्या?”
“सपने भी अपने हैं, वचन भी भारी,
कदम डगमगाए, पर हिम्मत हमारी।”

मुड़-मुड़ कर पीछे देखती है,
दिल में उम्मीद चमकती है।
शायद कोई हाथ थाम ले उसका,
कंधे पर रख दे भरोसा गहरा।

तभी मां का चेहरा चमक उठा,
आंखों में आस्था का दीप जला।
ममता जैसे पर्वत खड़ा उसके साथ,
आंखों से कहती, “चल बेटी, तू ना रुक अब।”

मां बोली बिना बोले,
“अब उड़ने की बारी है तेरी।
मैं हूं यहां, तू बस आगे चल,
तेरे सपनों की राह में ना आने दूंगी कोई हलचल।”

बेटी लिपटी मां से, आंखें भर आईं,
हिम्मत की पगडंडी मां की गोद से पाई।
फिर सिर ऊंचा कर चल पड़ी वो वीर,
गगन पुकारे, सपनों का तीर।

हम बेटियां हौसलों की परवाज़ी हैं,
बंधन हो चाहे, पर तितली सी आज़ादी भी हो।
बस एक हाथ कंधे पर रख भर दे भरोसा,
तो दुनिया हिल जाती है, स्वप्न साकार होते हैं।

सच कहूं तो हर मां के पीछे एक पापा का हाथ भी होता है,
जो मन को प्रेरित करता है, बेटी के सपनों को आकार देता है।
मां दिल से संभालती है, तो पापा दिशा दिखाते हैं,
मां आशीर्वाद बनती है, तो पापा विश्वास बन जाते हैं।

मैंने अपनी मां को बहुत छोटी उम्र में खो दिया था,
पर मेरे पापा ही मेरे हौसले, मेरे आकाश बने।
संयुक्त परिवार में जहां कॉलेज या पिकनिक जाना भी मनाई थी,
वहां मेरे पापा ने मुझे हर कदम पर आगे बढ़ाया।

उन्होंने कहा — “उड़ बेटी, मैं तेरे साथ हूं।”
उनके विश्वास ने मेरी उड़ान को पर दिए,
उनकी हिम्मत ने मेरे सपनों को दिशा दी।
आज जो मैं हूं, उन्हीं के आशीर्वाद से हूं,
मेरे हीरो, मेरे पापा, थैंक यू पापा।

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