जौनपुर। साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक काव्यगोष्ठी रविवार दिनांक 8 जून 2025को बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह सभागार रासमंडल जौनपुर में आयोजित हुई। गोष्ठी का शुभारंभ मां सरस्वती वंदना से हुई तत्पश्चात वरिष्ठ साहित्यकार रामजीत मिश्र कृत दास्तान-ए-उल्फत का लोकार्पण संपन्न हुआ।कोशिश की मासिक काव्यगोष्ठी में दिवंगत साहित्यकार पी.सी.विश्वकर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा और उन्हे काव्यात्मक भावान्जलि अर्पित की गई।अध्यक्षता करते हुए ख्यात व्यंग्यकार सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने उन्हें समावेशी कवि और शायर बताया और उनकी कृति लफ्ज- लफ्ज आईना का जिक्र किया।शायर गिरीश कुमार गिरीश ने उन्हे मानवता और सद्भाव का कवि बताते हुए कहा-चले आओ तुम्हारी ही कमी महसूस होती है।जनार्दन प्रसाद अष्ठाना पथिक ने उन्हे याद करते हुए कहा-हाथ मले मल-मल पछताए, रामजीत मिश्र ने कहा कि उनका जीवन साहित्य के लिए समर्पित रहा।उन्होंने कहा-कोई न साथ देता, मुसीबत के वक्त में-वैसे तो बहुत सारे मेहरबान दिख रहे,प्रो.आर. एन.सिंह ने कहा- समकालीन साहित्य के संवेदनशील कवि थे और उनके जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला।अनिल उपाध्याय ने अपनी क्षणिका के माध्यम से उन्हे याद किया-जहाँ तक हमने तलाशा विश्वकर्मा जी रहे सहजता की परिभाषा,डाक्टर संजय सिंह सागर ने कहा कि मुझे उनकी मोहब्बत मार गई।रमेश चंद्र सेठ आशिक जौनपुरी ने अपनी रचना-याद सताएगी सदा पर क्या है उपचार,ह्रदय तसल्ली के लिए स्मृति है आधार।।, अंसार जौनपुरी ने उनके लिए पढा-जंग लाजिम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।सुमति श्रीवास्तव ने जीवन की नश्वरता पर प्रकाश डाला-मन वैरागी हो जाता है,जब कोई अपना जाता है। नंदलाल समीर ने कहा-मैं चिता की आग हूँ,पर यह आग कवि का देह ही जलाती है- उसके कृतित्व को नहीं।कमलेश कुमार ने अपनी रचना से उन्हे भावान्जलि दी तो संजय सेठ ने उनके सामाजिक जुड़ाव को याद किया।राजेश पांडेय ने कहा -उनके मत का रसपान करो-कवि के योगदान को रेखांकित किया।काव्यगोष्ठी का संचालन अशोक मिश्र ने किया और अंत में डॉक्टर विमला सिंह ने आभार ज्ञापित किया।
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