नाउन चाची.... |Khabare Purvanchal

एक छोटी सी दियली और
अँचरा में पाँच रुपये की....
रंग वाली पुड़िया गठियाये
दोपहरी में.... 
किसी यजमान के घर अक्सर            
पहुँच ही जाती है...."नाउन चाची"      
और इतना ही रंग घोलकर..!         
यजमान के साथ-साथ.... 
पूरे मोहल्ले की लड़कियों, 
बहू,सास,ननद सारी महिलाओं के 
पाँव में महावर लगा देती है...
और छोटे बच्चों के पाँव पर                    
चिरई, तोता, मैना....
उकेर देती है... साथ ही.....
पूरी दुपहरी का गलचौर और 
सारे मोहल्ले का समाचार... 
लाइव टेलीकास्ट...! 
बिल्कुल मुफ्त...! नॉन स्टॉप... !
सुना देती है....."नाउन चाची"
जाते वक्त "आखत" के रूप में 
अनाज,आलू,प्याज,दाल, 
सिद्धा-पिसान या कभी-कभार 
दो-चार रुपए भी नगद मिलने पर         
यजमान की जय हो.....                       
का ढेरों आशीष देती... 
चली जाती है.... "नाउन चाची "
सौर के बाद सोहर की गवाई.. 
ओछ्वानी की पिसाई से लेकर..         
शुभ कर्मों में आटे से चौका पूरने        
गौरी-गणेश बनाने में,दूब लाने में,
मियां बीवी के गांठ जोड़ने में           
और घर-घर बुलावा देने में....या      
यूँ कहें कि जीवन के हर मोड़ पर       
याद आती है...."नाउन चाची"         
 तीज त्योहारों के अलावा 
आए दिन....
मोहल्ले में आती रहती हैं
"नाउन चाची"... 
ग्रामीण परिवेश की मान्यता प्राप्त
परजौटी प्रथा में......!
महिलाओं के हर सुख-दुख में         
शामिल होने वाली और...               
 उनकी सबसे प्रिय....! 
परजुनिया होती हैं..."नाउन चाची"      
आप चाहे तो उन्हें                           
 खुफिया,संदेशवाहक,गुप्तचर या 
खबरी भी कह सकते हैं... 
पर नाउन चाची का 
एक ही रंग "लाल" 
मोहल्ले में,समाज में.... 
बहुरंगी छाप छोड़ता है...!
बहुरंगी छाप छोड़ता है...!

रचनाकार
जितेन्द्र कुमार दुबे 
क्षेत्राधिकारी नगर,जनपद जौनपुर

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