मानव में ‘मनुर्भव’ वाला भाव कायम रहे :सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज


महाराष्ट्र के ५५वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम पर विशेष’ वर्चुअल रूप में आयोजित इस सन्त समागम का सीधा प्रसारण ११,१२,१३ फरवरी, २०२२ को मुंबई से किया जायेगा


मुंबई :मानव जब मानव जैसे कार्य करेगा तभी असल मायने में उसे मानव कहा जा सकता है। अगर हमारे उपर कोई जिम्मेदारी सौंप दी जाती है कि इस कार्य को ऐसे करना है लेकिन वह कार्य हम नहीं कर पाते तो असफलता का ठप्पा लग जाता है।

किसी चिडि़या को कभी यह नहीं कहा जाता कि चिडि़या वाले कार्य करो। एक चिडि़या को चिडि़या लगना है तो उसका मापदंड यही है कि उसके पंख होने चाहिए, उसका एक तरह का आकार होना चाहिए, उसमें चोंच से उस तरह की आवाज़ निकालने या घोंसला बनाने जैसे विशेष लक्षण, कुछ गुण होने चाहिए तो वह चिडि़या की परिभाषा बन जाती है। मनुष्य के अलावा प्रकृति के प्रत्येक अंग अपने अपने कार्य कर रहे हैं। हमें ऐसा कभी नहीं दिखता कि घोड़ा, घोड़ा नहीं लग रहा है या पेड़, पेड़ नहीं लग रहा है लेकिन मनुष्य के साथ ही यह बात है कि आकार भले ही मनुष्य वाला है पर कर्म मनुष्य वाले नहीं हैं। अगर मनुष्य है तो मन में एक प्यार की भावना होनी चाहिए। अपने असली रूप इस निरंकार परमपिता-परमात्मा की पहचान होनी चाहिए जिसके लिए मनुष्य जन्म मिला है। अगर ये बाते मनुष्य में नहीं तो वह सही मायनों में मनुष्य नहीं कहलाया जा सकता। सम्पूर्ण हरदेव बाणी में भी यही प्रश्न किया गया है कि-ऐ मानव तू मानव बन जा कहते बारंबार क्यों।
चाहे सतयुग हो, द्वापर हो, त्रेता हो या अब कलयुग चल रहा है सदियों से यह सन्देश दिया जा रहा है। इतिहास को एक तरफ रखकर अपना व्यक्तिगत जीवन भी देखें तो मानव को मानव वाले कर्म करने का सन्देश बार-बार क्यों देना पड़ रहा है? मनुष्य को याद दिलाने के लिए ही बार-बार ऐसा कहा जा रहा है क्योंकि इन्सान जागता नहीं है। जैसे समय पर उठने के लिए उस समय का अलार्म लगाकर हम सोते हैं। पर जब यह अलार्म बजता है तो सोचते हैं कि यह क्यों बज रहा है और हम उसमें वापस पांच मिनट के बाद का समय डाल देते हैं और फिर सो जाते हैं। अलार्म फिर आवाज़ करता है और हम फिर से कुछ समय बाद का समय डाल देते हैं। मनुष्य को जागृत करने के लिए ‘मनुर्भव’ या मनुष्य बनने का संदेश सद्गुरु, वली, पीर-पैगम्बर बहुत समय से देते चले आ रहे हैं पर हम ही उस रूप में सोते जा रहे हैं और कान में यह आवाज़ पड़ने के बावजूद भी उठते नहीं हैं। 
हमारे जीवन का जो उद्देश्य है उसको पूरी क्षमता से हमें जीना है। मानव होने के नाते जो हमसे अपेक्षाएं हैं उन्हें हमें पूरा करना है। अपने जीवन को खूबसूरत बनाना है। अगर हम मनुष्य हैं तो हमारे अंदर मानवीय गुण होने चाहिए यह बुनियादी मापदंड है और दूसरी बात यह है कि उन गुणों पर जीते हुए आपके अंदर से एक महक निकले और वो सब तक पहुंचे। 

Post a Comment

0 Comments