समय का पंछी उड़ चला



– डॉ मंजू लोढ़ा

समय का पंछी पंख फैलाए,
उड़ चला फिर एक वर्ष ढल गया।
पलों की झिलमिल यादें लेकर,
बीता साल भी कल बन गया।
रुककर सोचो ज़रा एक बार,
साल के ये ३६५ दिन —
यानी ८,७६० घंटे,
या ५,२५,६०० मिनट,
या ३१,५३,६०,००० सेकंड!
इतना अनमोल खज़ाना हमें हर साल मिलता है,
पर अफ़सोस… आधा तो शिकायतों में ही सिल जाता है।
जो वक्त चला गया, वो लाखों देकर भी नहीं आता,
पैसा लौट आता है, पर समय नहीं लौटता।
इसलिए हर पल को अर्थ दो,
हर दिन को कर्म दो,
हर सुबह को उद्देश्य दो,
और हर शाम को संतोष दो।
जब ऑफिस में रहो तो सौ प्रतिशत मन वहीं दो,
घर लौटो तो परिवार को पूरा “अपना” दो।
कर्म और संबंध — यही तो जीवन के दो पंख हैं,
इन्हीं पर उड़ता है सच्चा आनंद।
नया वर्ष कहता है, जो बीत गया उसे अनुभव बना लो,
जो आने वाला है उसे संकल्प बना लो।”
हर दिन को यूँ जियो जैसे वही तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ दिन हो,
हर पल को यूँ अपनाओ जैसे वही तुम्हारा अंतिम क्षण हो। समय का पंछी फिर उड़ेगा,
पर तुम तय करो
इस बार हर उड़ान में सार्थकता के पंख होंगे,
और हर पल बनेगा जीवन की उपलब्धि।

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