आज का यह दिन अत्यंत शुभ और पवित्र है।
दीपों की जगमगाहट के बाद जब कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आती है, तो वह दिन केवल कैलेंडर की एक तिथि नहीं होता
वह होता है ज्ञान का उत्सव, विवेक का पर्व, आत्मप्रकाश का आरंभ।
आज हम मनाते हैं, सौभाग्य पंचमी, जिसे ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है।
दीपावली जहां बाहरी अंधकार को मिटाती है,
वहीं ज्ञान पंचमी हमारे भीतर के अंधकार को दूर करने का पर्व है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि
धन, यश, वैभव सब क्षणभंगुर हैं पर ज्ञान अमर है, वही आत्मा का सच्चा आभूषण है।
जैन परंपरा में यह दिन धर्म ग्रंथों, आगमों और शास्त्रों की पूजा के लिए समर्पित है।
यह दिन आत्मचिंतन, अध्ययन और साधना का प्रतीक है। इसी दिन से पांच वर्ष और पाँच महीने तक विशेष उपवास और अध्ययन का संकल्प भी लिया जाता है।
ज्ञान वह दीपक है जो भीतर का अंधकार मिटाता है। हिंदू संस्कृति में भी यह दिन मां सरस्वती की आराधना का है —
जो हमें बुद्धि, वाणी और विवेक की शक्ति देती हैं।
मां शारदा, श्वेत वस्त्रों में, कमल पर विराजित,
हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाती हैं।“सौभाग्य पंचमी : ज्ञान पंचमी की वंदना"
कार्तिक मास की शुभ पंचमी आई,
दीपों के बाद ज्ञान की ज्योति लाई।
मां सरस्वती का पावन दिन है आया,
शुभ्र वस्त्रों में माँ मुस्कायी
ओम रीं नमो नाणस्स मंत्र की ध्वनि,
मन मंदिर में गूँजे पावन स्तुति,
ज्ञान की देवी को नमन हमारा,
जिनका प्रकाश करे जीवन सारा।
जैन धर्म में यह दिन निराला,
धर्म ग्रंथों का पूजन मतवाला।
शास्त्रों में बसे हैं जीवन के रत्न,
श्रुतज्ञान से उजले हों मन और तन।
पाँच ज्ञान के दीप प्रज्वलित करो,
मति ज्ञान से बुद्धि को निर्मल करो।
श्रुत ज्ञान से वाणी पावन हो जाए,
अवधि ज्ञान से सीमा मिट जाए।
मनःपर्याय से अंतर के भाव पढ़ो,
केवल ज्ञान से आत्मा को साधो।
हे माँ शारदा! श्वेत कमलों की रानी,
विवेक, करुणा, ज्ञान की निशानी।
तेरी वीणा से झरे स्वर सुगंधित,
तेरा आशीष करे जीवन पवित्र।
कहते हैं जब ब्रह्मा ने जग रचा,
ज्ञान के बिना सृष्टि अधूरी ।
तब वीणा वादिनी ने लिया अवतार,
अज्ञान हरने को किया विस्तार।
जैन परंपरा में यह दिन महान,
आत्मचिंतन, अध्ययन का अभियान।
पाँच वर्ष, पाँच महीने का नियम,
श्रद्धा से निभाते हैं साधक हर दम।
हे माँ सरस्वती, बुद्धि दो निर्मल,
हम रहें सदा विवेक से संवल।
सत्य के दीप जलें हर दिशा में,
ज्ञान का उजास रहे सदा हृदय में।
॥ ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः ॥
॥ नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं ॥
आज के दिन का यह मंगल व्रत,
हम सबके जीवन में लाए सुकृत।
सौभाग्य पंचमी का यह पर्व सुनाए,
ज्ञान का दीपक जग में जलाए॥
हे माँ सरस्वती,
तेरी वीणा के सुरों से हमारे विचार मधुर हों,
हमारे कर्म पवित्र हों, और हमारा जीवन सार्थक हो।
आज का यह दिन हमें सिखाता है —
कि ज्ञान से बड़ा कोई धन नहीं,
और आत्मा से बड़ा कोई गुरु नहीं।
आओ, हम सब मिलकर प्रण करें
कि अपने जीवन में हर दिन एक नया दीप जलाएँ —
ज्ञान का, विवेक का, और आत्मज्योति का।
0 Comments