आओ करें अंतर्मन की यात्रा



डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

आओ, आओ, एक नई यात्रा की शुरुआत करें,
बहुत घूम लिए जग में, अब भीतर की बात करें।
परिधि से केंद्र की ओर चलें, प्रभु नाम का दीप जलाएं,
बाहरी रस्तों संग-संग अब आत्मा का मार्ग अपनाएं।
हम सब एक राजा हैं, यह शरीर हमारा टापू है,
रिश्ते-नाते स्वागत करें, यह जीवन एक कापू है।
पाँच इंद्रियाँ मंत्री हमारी, सेवा में सदैव लगाएं,
भजन, ध्यान, प्रभु स्मरण से जीवन को उजियाएं।
आँखें प्रभु को देखें हरदम, कान सुनें उनकी वाणी,
जीभ से गुणगान करें, नाक सूंघे पुष्प की कहानी।
स्पर्श इंद्रिय से छू लें हम, प्रभु का पावन रूप,
फिर ना डरे मृत्यु का भय, ना कोई मायाजाल का भूप।
राजा परीक्षित की कथा सुनो, जो मृत्यु से डरे नहीं,
सात दिन के जीवन में भी प्रभु से मुख मोड़े नहीं।
भागवत श्रवण किया उन्होंने, शुकदेव से ज्ञान लिया,
विष भी हार गया उनसे — उन्होंने मोक्ष का मान लिया।
चलो, हम भी वह यात्रा करें, जो भीतर तक ले जाए,
हर सांस में प्रभु का नाम, हर कर्म में प्रेम समाए।
बाहरी यात्रा करते हुए भी, अंतर्मन को साधें,
हर पल प्रभु को पाने की, यह यात्रा हम साथ निभाएं।

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