सलाम आखिरी...(स्व. सरोज त्रिपाठी की स्मृति में) |Khabare Purvanchal

जाते जाते आप ले जाइये ये पयाम आखिरी,,
छोड़ जाने वाले रहबर तुझे है सलाम आखिरी..
सुबह ही तो मांगा था,
 दुआओं में तेरी हयात,,
क्या मालूम था दे जाओगे मुझको ये शाम आख़िरी..
याद है मुझे, तुमने कहा था ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे,,
वापस ही न आओगे,,
ये जानते हम, तो कर लेते उस दिन बातें तमाम आखिरी..
महफ़िल से लोग तेरे हिज्र ओ वफ़ा की बातें
करके चले गए,, 
देर तक चलती रही तेरे न आने की बात,,
मैं फ़िर भी वहाँ बैठा करता रहा तेरा ही इंतज़ार आखिरी..
सोने चांदी से भी बेहतर तेरे लफ्ज़ जैसे के हों मोती,,
दिल में संभाल रखी है मैंने, तेरी वो हर एक बात आखिरी..
हक़ परस्ती की बात की, सबके अधिकारों की बात करते रहे
और आज सर् पे कफ़न बांध ही लिया
जिगर के खून से लिखेंगे हम,, 
तुम्हारा ये मुकम्मल इतिहास आख़िरी..
तुम चाहते थे न,,
अपनी कलम से लिख दूं मैं तुम पे तारीख़ ए गवाही
मेरे कन्धों पे है अब,,
 यही करना एक काम आख़िरी..
लिख दे अए खुदा आज चांद सितारों पे 
तू नाम-ए-सरोज,,
मेरी आखिरी दुआ और है ये मेरा अरमान आख़िरी..
सरोज सर् आपको है दिल से
सलाम आख़िरी
सलाम आख़िरी
- मासूमा तलत सिद्दीकी

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