मेरे पापा.. | Khabare Purvanchal

उंगली पकड़ के कभी चलना सिखाया था

सही और गलत का मतलब बताया था 

जेबे थी खाली फिर भी

शहजादी सा पाला था

होती थी कभी नासाज जो तबियत 

बैठ सिराहने माथा सहलाया था

चोट लगी जब भी मुझे

दर्द मे मैने उनको पाया था

कभी डगमगाए न कदम मेरे

मजबूती से खड़ा होना सिखाया था 

था एक फरिश्ता मेरे जीवन मे 

जिसे मैने 'पापा' बुलाया था

     कवियत्री
कल्पना नीरज शुक्ला

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