बदलापुर। ‘‘परमात्मा पूर्ण है और इसके द्वारा प्रदत हर परिस्थिति भी पूर्ण है फर्क सिर्फ हमारे दृष्टिकोण का होता है की हम उस परिस्थिति को किस भांति देख रहे हैं, उससे सार क्या निकाल रहे हैं और जीवन में हम उससे क्या सिखलाई ले रहे हैं। हमारा एक नज़रिया प्राय यह होता है कि परिस्थिति यदि हमारे अनुकूल न हो तो हम परमात्मा के लिए गलत विचार मन में ले आते हैं। इसके विपरीत यदि हमारा आध्यात्मिक पहलू मजबूत हो तब हम इसे परमात्मा की रजा समझकर सहज भाव में स्वीकार कर लेते है। ऐसी ही सकारात्मक विचारधारा मन को कभी विचलित नहीं होने देती। संतो और भक्तों का सदैव यही सकारात्मक दृष्टिकोण रहा है।’’ यह प्रतिपादन निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने दिनांक 10 मार्च, दिन शुक्रवार को बदलापुर पूर्व स्थित अंबरनाथ क्रिडा संकूल में आयोजित एक दिवसीय निरंकारी संत समागम में व्यक्त किए।
इस समागम में संपूर्ण ठाणे जिले के अतिरिक्त मुंबई, नवी मुंबई, पनवेल इत्यादि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्तों एवं ईश्वर प्रेमी सज्जनों ने हजारों की संख्या में भाग लिया। सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता जी के युगल रूप मेंदर्शन पाकर सभी श्रद्धालु भक्तों के चेहरों पर छलक रही अलौकिक खुशी के भाव देखते ही बन रहे थे | अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने भी संत समागम में सम्मिल्लित होकर दिव्य युगल से आशीर्वाद प्राप्त किया।
सत्गुरु माता जी ने आगे कहा कि भक्तों एवं अन्य मनुष्यों की शारीरिक संरचना में कोई फर्क नहीं होता फिर भी भक्तों का जीवन संसार के अन्य व्यक्तियों से इसलिए अलग होता है क्योंकि भक्तों ने ब्रह्मज्ञान द्वारा इस परमात्मा को जान लिया तथा अपने अंदर एक परिवर्तन को अनुभव किया और इस सुखद अनुभव के उपरांत अपना जीवन सहज रूप में व्यतीत करने लगे। ऐसे भावों से युक्त होकर जब एक भक्त अपना जीवन जीता है तो वास्तविक रूप में उसका नजरिया सकारात्मक हो जाता है।
सतगुरु ने भक्ति के रंग का जिक्र करते हुए आगे फरमाया कि जब हम परमात्मा के प्रेम में रंग जाते हैं तो फिर दुनियावी रंगो का हम पर प्रभाव नहीं पड़ता। जिन्होंने भी परमात्मा का यह पक्का रंग अपनाया उन्होंने हमेशा आनन्दित होकर अपना जीवन जिया। भक्तों के जीवन में यदि विपरीत परिस्थितियां आई भी तब भी उन्होंने कभी इस परमात्मा से विश्वास नहीं तोड़ा। सदैव अपना अटूट विश्वास बनाए रखा।
अंत में सत्गुरु माता जी ने कहा कि परमात्मा के ज्ञान से हमारी शक्लोसूरत में कोई बदलाव नहीं होता अपितु हमारे अंतर्मन के भाव परिवर्तित होकर सकारात्मक हो जाते हैं और ऐसा बदलाव ही जीवन में मुबारक बदलाव कहलाता है। फिर संसार में चाहे हमारी कितने ही अलग-अलग प्रकार के लोगों से मुलाकात हो जायें। उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भले जो भी हो, उनका खानपान या रहन सहन भले ही अलग हो। कहने का भाव केवल यही की अनेक विभिन्नतयो के बावजूद भी दिल में यदि परमात्मा के साथ एकत्व बना हुआ है तो किसी के प्रति कोई भेद मन में उत्पन्न नहीं होता। सभी अपने प्रतीत होते हैं। सभी पूजनीय लगते हैं क्योंकि हर घट में, सृष्टि के कण कण में इस परमात्मा का ही साकार दर्शन हो रहा होता है।
इस समागम में अनेक भक्तों ने अपने भावों को व्याख्यान, भजन, भक्तिगीत एवं कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हुए मनुष्य जीवन की सार्थकता में आध्यात्मिकता का महत्व अधोरेखित किया।
0 Comments