मुंबई विश्वविद्यालय में सुरेश चन्द्र शुक्ल की मातीचे देव का लोकार्पण



मुंबई। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी व हिंदी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सेवा पखवाड़ा के उपलक्ष्य में आयोजित विश्वविद्यालय स्तरीय वक्तृत्व प्रतियोगिता के दौरान सुविख्यात प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' के काव्य संग्रह मातीचे देव का लोकार्पण मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ करुणा शंकर उपाध्याय, अपर पुलिस महानिदेशक व फोर्स वन के निदेशक कृष्ण प्रकाश, प्रख्यात चिंतक व श्री भागवत परिवार के अध्यक्ष वीरेंद्र याग्निक, ऑनलाइन व दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो शिवाजी सरगर द्वारा किया गया। इससे पहले आयोजित स्पर्धा में विकसित भारत@ 2047 विषय पर 40 से ज्यादा छात्रों ने हिस्सा लिया। प्रथम मौसम उमाशंकर यादव, द्वितीय खुशी पांडेय, तृतीय श्रध्दा रविकांत शुक्ल, बिड़ला कॉलेज, प्रोत्साहन विजेता आकाश इंद्रजीत उपाध्याय तथा मीनाक्षी अरुण कुमार शुक्ला रहे। निर्णायक डॉ दिनेश पाठक व डॉ मिथिलेश शर्मा रहे।
बता दें कि सुरेश चंद्र शुक्ल, भारतीय- नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नॉर्वे के अध्यक्ष हैं। किसान विमर्श पर रचित उनकी हिंदी काव्यकृति मिट्टी के देवता का अनुवाद सोपान भानुदास दहातोंडे ने किया है। पुस्तक दुनिया के किसानों और भारत में किसान आंदोलन में शहीद हुए 700 किसानों को समर्पित है। 
किसान अन्नदाता है, किसान समाजवादी है। किसी से भेदभाव नहीं करते किसान गरीब अमीर, हिन्दू- मुस्लिम-सिख ईसाई, बौद्ध, जैन सभी के लिए अनाज उगाता और उन्हें बेचता है। किसानों की आत्महत्याओं से, उनके बच्चों को पौष्टिक भोजन और निशुल्क शिक्षा और चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाने से लेखक सुरेश चन्द्र शुक्ल व्यथित हैं और उनकी वेदना काव्य रूप में पुस्तक मातीचे देव (मिट्टी के देवता) में बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत हुई है। पुस्तक की भूमिका साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध लेखक लक्ष्मण गायकवाड़ ने लिखी है। समीक्षकों के अनुसार मातीचे देव (मिट्टी के देवता) अपने समय का दस्तावेज और किसानों की पीड़ा है। लोकार्पण के अवसर पर समस्त अतिथियों समेत प्राचार्य पब्लिक डिग्री कॉलेज डॉ राकेश दुबे व वरिष्ठ पत्रकार राजेश विक्रांत का सम्मान प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय की नई पुस्तक ऑपरेशन सिंदूर अनजाने सन्दर्भ देकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ सचिन गपाट ने किया। प्राध्यापक सुनील वलवे व 
डॉ हनुमंत धायगुडे सहयोगी रहे।
पुस्तक का प्रकाशन राम कुमार के मुंबई भाषा परिषद ने किया है।

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