जौनपुर। राम चरित मानस , मानव को जीवन जीने की कला सिखाती है तो वहीं मानव मात्र का धर्मशास्त्र गीता धर्म, कर्म, यज्ञ, योग के प्रति जागरूकता पैदा करते हुए और जाति पाति मज़हब सम्प्रदाय देश व काल से परे मानव मात्र का धर्मशास्त्र माना गया जिसके माध्यम से लौकिक व पारलौकिक दोनो समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।यथार्थ गीता की बढ़ती लोकप्रियता का ही नतीजा है कि आज विश्व की सर्वाधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है। जनपद जौनपुर के नवनिर्मित नए थाना, तेजी बाजार के प्रथम युवा थानाध्यक्ष अश्वनी दुबे ने मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार शिवपूजन पांडे से बातचीत के दौरान उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि '' गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रसंग्रहैः । या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥गीता भली प्रकार मनन करके हृदय में धारण करने योग्य है । जो पद्मनाभ भगवान के श्री मुख से निःसृत वाणी है फिर अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवस्यकता ।यथार्थ गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति आसानी से अपने भीतर छिपे शत्रुओं को परास्त कर देता है और हृदयस्थ परम पिता परमात्मा का दिग्दर्शन करता है। गीता के श्लोक– परित्राणाय साधुनाम ,विनाशाय च दुष्कृताम् का उदाहरण देते हुए श्री दुबे ने कहा कि सज्जनों की रक्षा करना और दुष्ट जनों का विनाश करना ही कानून का उद्देश्य है। शिवपूजन पांडे ने मुंबई की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था समरस फाउंडेशन की तरफ से अश्वनी दुबे का सत्कार किया। अश्वनी दुबे ने शिवपूजन पांडे को स्वामी अड़गड़ानंद की प्रसिद्ध पुस्तक यथार्थ गीता देकर शुभकामनाएं दी।
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