मुंबई। मध्य रेलवे के जोनल रेलवे यूजर्स कंसल्टेटिव कमेटी के सदस्य डॉ मनोज दुबे ने रेल मंत्री को पत्र भेज कर भारतीय रेलवे के ट्रैक मैनो की मांगो को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की है
रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेशानुसार सुधारित ट्रैक मेंटेनर केडर रिस्ट्रक्चरिंग को तत्काल लागू नहीं किया जा रहा है। जिस कारण अधिकाधिक ट्रैक मेंटेनर कर्मचारियों को पदोन्नति के अवसर नहीं प्राप्त हो रहे हैं।
(रेलवे बोर्ड पत्र संख्या 2015/CE1/GNS/2 दिनांक 8/3/2019)
इनके अलावा ज्यादातर डिवीजन में लगभग 10 साल से रिस्ट्रक्चरिंग नहीं हुआ है जिसका खामियाजा मे ट्रैक मेंटेनर विभागीय पदोन्नति के अवसर प्राप्त नहीं कर सके हैं।2.इंजीनियरिंग विभाग के ट्रैकमैंटेनर कर्मचारी,आर्टिसन एवं आर्टिसन हेल्पर कर्मचारियों को रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेशानुसार सुधारीत रिस्क एवं हार्ड ड्यूटी भत्ते का तत्काल भुगतान नहीं किया जा रहा है। अगस्त-2018 में रेलवे बोर्ड द्वारा आदेश जारी होने के बाद अभी तक इस संदर्भ में कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है।
बोर्ड पत्र संख्या PC-VII/ 2018/l/7/5/2 दिनांक 28/08/2018.
3. महोदय इजीनियरिंग विभाग के गेटकीपर कर्मचारियों से ज्यादातर रेलवे जोन के विभिन्न मंडलों में 12-12 घटे ड्यूटी करवाई जा रही है जब की RAILWAY SERVANTS (HOURS OF WORK AND PERIOD OF REST RULES,2005 PART-II POINT No.8/4/१&२) अनुसार गेटकीपर कर्मचारियों को यदि उनके कार्य स्थल से 0.5 km के अंतर में आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है तो उन्हें 24 घंटे अतिरिक्त रेस्ट देना है। लेकिन भारतीय रेलवेे में अधिकांश में इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। महोदय वर्तमान की कर्मचारियों की रिक्तियों (Vacancy) को देखते हुये यदि 24 घंटे का अतिरिक्त रेस्ट नहीं दे सकते है तो उन गेटकीपर कर्मचारियों को अतिरिक्त कार्य समय का ओवर टाइम भता प्रदान किया जा सकता है परंतुु रेलवे महकमा द्वारा सब नियम कायदे ताक पर रखकर कर्मचारियोंं से जबरदस्ती में 12 घंटे कार्य कराया जा रहा है।
4. महोदय रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेशानुसार ट्रैकमैंटेनर कर्मचारियों को प्रति वर्ष (जनवरी से जून-01 और जुलाई से दिसम्बर-01 कुल 02 जोड़ी) 02 जोड़ी सैफ्टी शूज प्रदान करना है। परंतु आपको बताते हुए दुःख हो रहा की हमारे ट्रैकमैंटेनर कर्मचारियों को वर्ष 2017 से 2020 तक 02 जोड़ी प्रति वर्ष के हिसाब से कुल 08 जोड़ी सैफ्टी शूज मिलना चाहिए थे जब की अभी तक सिर्फ ज्यादातर मंडलों में एक या दो जोड़ी जूते मिले है और वर्ष 2017 से 2020 तक ना कोई जूते दिए गए और नाही रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित राशि रु.1400/- प्रति जोड़ी मतलब एक साल में 1400 x 2 = रु .2800/- मिलना चाहिए थे परंतु अभी तक ना जूते मिले है और ना ही किसी प्रकार का भता प्रदान दिया गया।
रेलवे बोर्ड पत्र संख्या 2017/transf.cel/CIVIL/O3 दिनांक 05.02.2018 .
महोदय सैफ्टी शूज के संदर्भ में एक और बात आपके सामने रखना चाहते है भारतीय रेलवे ट्रैक मेंटेनर को दिया जाने वाला सैफ्टी शूज गुणवता और मूल्य यह संदेह का विषय है अतः आप इस विषय को गंभीरता पूर्वक लेते हुए ट्रैक मेंटेनर कर्मचारियों को दी जाने वाली सेफ्टी शूज में भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसको रेलवे के सभी ऑफिसर मिलकर ट्रैक मेंटेनर को नरकिय जिंदगी जीने को मजबूर कर रहे हैं।
5. भारतीय रेलवे के ट्रैकर्मेटेनर कैडर को रेनकोट,विंटर जैकेट एवं टूल्स इत्यादि का वितरण समय से नहीं किया जाता है। रेलवे बोर्ड से आदेश जारी होने से अब तक केवल एक से दो बार विंटर जैकेट दिए गये है जिनकी गुणवता भी ठीक नही है तथा रेनकोट कुछ मंडल में एक से दो बार एवं कई मंडलों में अभी तक भी नहीं दिया गया है जबकि रेल बोर्ड के आदेश अनुसार एक वर्ष में दो बार सेफ्टी शूज,दो वर्ष में एक बार विंटर जेकेट तथा एक वर्ष में एक रेनकोट देने प्रावधान है तथा इस दौरान ट्रैक मेंटेनर,आर्टिजन तथा हेल्पर ने ड्यूटी के दौरान सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सैफ्टी शूज विंटर जेकेट तथा रेनकोट बाजार से खरीदकर बिना किसी बाधा के अपने कर्तव्य का निर्वहन किया जा रहा है। उक्त सेफ्टी किट का टेंडर प्रक्रिया शायद डिवीजन तक हो रही है जिसमें बहुत बड़ा घोटाला किया जा रहा है एवं ग्रुप डी कर्मचारी ट्रैक मेंटेनर को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
6. भारतीय रेलवे में ट्रैकमैंटेनर के ओन रिक्वेस्ट स्थानांतरण प्रार्थना - पत्र जिन कर्मचारियों का सामने के मंडल रेलवे से NOC आ चूका है उनको पिछले कई वर्षों से रिलीव नहीं किया जाता है जिससे यह कर्मचारी वर्ग अपनी पूरी जिंदगी परिवार से दूर रेलवे में ही बिता जाता है।
7.भारतीय रेलवे के ट्रैक मेंटेनर की सीनियारीटी ज्यादातर SSE कार्यालय के अधीन यूनिट में गणना की जाती है एवं अन्य विभाग के कर्मचारियों की सिनियोरीटी मंडल कार्यालय के अधीन गणना की जाती है जिससे उनका प्रमोशन इमानदारी से तुरंत ही हो जाता है। जबकि ट्रैक मेंटेनर कर्मचारी हमेशा अपनी जिंदगी को प्रमोट होने का इंतजार करता रह जाता है।
8. भारतीय रेलवे के ट्रैकमेंटेनर को लंच समय सहित लगभग 12 घंटे से भी ऊपर कार्य करवाया जा रहा है। यह कर्मचारी अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय फील्ड वर्क के दौरान हेड क्वार्टर से दूर करता है इन्हें अपना लंच भी रेलवे ट्रैक के आसपास गंदगी में ही करना पड़ता है क्योंकि रेलवे द्वारा फील्ड में इनको लंच एवं रेस्ट रूम की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
9. सभी विभाग के ग्रुप डी कर्मचारियों को कैरियर प्रमोशन के तहत 4200 के ग्रेड तक प्रमोशन प्राप्त होता है जबकि रेलवे के गलत पॉलिसी के कारण ट्रैक मेंटेनर को अपनी पूरी जिंदगी 1800 ग्रेड पे से 2400 तक या फिर लास्ट 2800 ग्रेड पर रिटायरमेंट दे दिया जाता है। सबसे ज्यादा काम और सबसे कम प्रमोशन यह दुनिया में भारतीय रेलवे के ट्रैक मेंटेनर पर लागू होता है।
10. आजकल निजीकरण एवं निगमीकरण के तहत भारतीय रेलवे में ज्यादातर कार्य निजी टेंडर प्रक्रिया के तहत करवाया जाता है परंतु भारतीय रेलवे के ऑफिसर द्वारा टेंडर प्रक्रिया का कार्य ट्रैक मेंटेनरो द्वारा करवा कर एवं टेंडर प्रक्रिया के ठेकेदार से मिलकर उन रुपयों को आपस में बांट लिया जाता है जिससे ट्रैक मेंटेनर को शारीरिक एवं मानसिक दबाव दिया जाता है जिससे वह अपने जीवन काल को गधे जैसा मानकर लगातार कार्य करता रहता है। सबसे बड़ा इसका दुष्परिणाम ट्रैक मेंटेनर के परिवार पर पड रहा है। जिसको आप भली-भांति प्रकार से समझ सकते हैं।
11. पूरे भारतवर्ष में सेवा के दौरान ट्रैक मेंटेनर को सबसे ज्यादा यातनाए झेलनी पड़ती है क्योंकि कहने को यह सरकारी कर्मचारी सर्दी,गर्मी एवं बरसात के वितरित मौसम के बावजूद जंगल,पहाड़,रेगिस्तान,नदी-नाले आदि में अपनी ड्यूटी इमानदारी से लगातार करता रहता है उसके बावजूद भी इस कर्मचारी को छोटी गलती पर भी बड़ी विभागीय कार्यवाही से गुजरना पड़ता है।
12. भारतवर्ष जब मिशन मंगल,चंद्रयान या अन्य प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोगों से लगातार दूसरे ग्रहों की तरफ बढ़ रहा है और रोज-रोज नए नए अविष्कारों की खोज कर रहा है वही भारतीय रेलवे का ट्रैक मेंटेनर कर्मचारी बिना कोई इस प्रकार का उपकरण जिससे कि उसे ज्ञात हो जाए की ट्रेन मेरे आस पास आने वाली है और मैं ट्रैक से बिल्कुल बाहर हो जाऊं इस प्रकार के यंत्र से अभी भी दूर है जिससे आए दिन ट्रैकमैन लगातार रन ओवर हो रहे हैं और अपने परिवार को दुखों की इस दुनिया में छोड़कर भारतीय रेलवे के लिए अपनी जान न्योछावर कर रहे हैं।
क्या यह प्रशासन की कमी नहीं है?अभी भी प्रत्येक वर्ष लगभग देश में 500 ट्रैक मेंटेनर अपनी जान ट्रैक के बीच में गवा रहे हैं।
वर्तमान में भारतीय रेलवे द्वारा रक्षक यंत्र का प्रयोग ट्रैकमेंटेनर को रेलवे ट्रेन से बचने के एहतियात के तौर पर प्रयोग किया गया है परंतु उसको भी अभी तक इस कर्मचारी तक नहीं पहुंचाया गया है शायद उसमें भी भ्रष्टाचार का महा घोटाले का खाका तैयार किया जा रहा है।
0 Comments