रक्षा का बंधन



–डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

हर सावन जब आती राखी
मन मयूर बन उड़ने लगता,
पंख पसारे स्मृतियों में,
पाखी बन नभ छूने लगता।

मायके की गलियाँ पुकारें,
आँगन की वो मिट्टी भाए,
भाई की बातें याद आएं,
हर रिश्ता मन को सिहराए।

सावन के झूले हिलते हैं,
कजरी की तानें गूँजती हैं,
पलकों पर बीते बचपन की,
मोहक छवियाँ झूमती हैं।

राखी की सोंधी सी खुशबू,
मन की डोर में बँध जाती,
कब पहुँचूँ मैं भैया द्वारे,
यह आशा हर दिन मुस्काती।

उसके हाथों राखी बाँधूं,
लंबी उम्र की दूँ सौगंध,
वो माथे पर हाथ फिराकर,
कह दे – "रक्षा का है ये बंध।"

दिल भर आए, आँखें नम हों,
पर मन में हो एक उजास,
हर सावन में साथ निभाए,
भाई-बहन का अटूट विश्वास।

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