अब मैंने जीना सीख लिया



–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

हाँ, अब मैंने जीना सीख लिया है,
अब मैं दूसरों की बातों से विचलित नहीं होती।
बुराई करने वालों की परवाह नहीं करती,
अब मैं खुद के लिए जीने लगी हूँ।

मनपसंद जगह पर घूमने लगी हूँ,
मनचाहा भोजन करने लगी हूँ।
जब मन किया गुनगुनाने लगती हूँ ,
 नृत्य भी कर लेती हूं ,
 सखी-सहेलियों के साथ 
 समुद्र किनारे बैठकर, बारिश के मौसम का चाय और भुट्टो के संग आनंद उठाती हूं ,
अपने दिल की बातें कहने लगी हूँ,
गलत लगे तो विरोध भी करने लगी हूँ।

चुपचाप सब कुछ सहना अब छोड़ दिया,
गलती हो जाए तो माफी माँगना सीखा,
गलत को गलत कहना भी सीखा।
समझ गई हूँ —
जितना चुप रहूँगी, उतनी ही मुश्किल बढ़ेगी।

अच्छा नहीं लगता जब लोग मुँह पर मीठा
और पीठ पीछे अपनों की ही बुराई करते हैं।
यह कैसी दोस्ती, यह कैसा अपनापन,
जहाँ आपस में ही गला तोड़ स्पर्धा है।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है —
निन्यानवे बार सहो,
सौवीं बार अपनी आवाज़ उठाओ।
बुरा लगता है बोलना,
पर सच की राह में बोलना जरूरी है।

फिर भी इतनी नहीं बदली हूँ,
शांति रहे तो चुप्पी संग ले लेती हूँ।
मनपसंद न हो तो भी
अब दुख मनाना छोड़ दिया है।
जो मिल जाता है, उसे ही अपनी पसंद बना लेती हूँ।

लोगों की मदद करती हूँ
मन, धन और कर्म से;
जहाँ तक संभव हो योगदान देती हूँ।
लेकिन तब भी नकारात्मकता मिले
तो गुस्सा भी आता है —
मेरी कोमलता को मेरी कमजोरी समझना
जवाब देना तो हर किसी को आता है।

जीवन में अपने सभी कर्तव्य निभाए —
पति के साथ हर कदम, हर हाल में साथ निभाया,
बुज़ुर्गों की दिल से सेवा की,
बच्चों की प्यार से परवरिश की,
बहूओं और पोते-पोतियों को ममता दी,
सभी रिश्तों को खूब निभाया,
आज भी निभा रही हूँ।
पर अब मैंने खुद के लिए भी जीना सीख लिया है।

ज़िंदगी के चौथे द्वार पर ही सही,
कुछ जीना सीख लिया है।
अब मैं अपने लिए भी जीने लगी हूँ,
अपनी मनपसंद बनने लगी हूँ,
अपनी पीठ स्वयं थपथपाने लगी हूँ।

अब जीवन मेरा, उड़ान मेरी,
मन की डोर, अब पहचान मेरी।
ना डर किसी का, ना कोई रुकावट,
अब मैं ही अपनी सबसे बड़ी ताक़त।

अब जितना जी चुकी, उतना तो जीना नहीं है,
क्यों न कुछ खुद की पसंद से कर लूँ,
खुद को खुश कर लूँ।
संस्कार और मर्यादा साथ लेकर
अपने लिए एक नई राह बना लूँ।

अपनी सखियों के लिए थोड़ी प्रेरणा बन जाऊँ,
अपने लिए अब जी भरकर जी लूँ।
ताकि जाने के वक्त कोई पछतावा हाथ न रहे,
बस एक मुस्कान हो, संतोष हो,
और जीवन की जीत हो।

 सखियों, आओ हम सब मिलकर अपने लिए भी जीना सीख ले, क्या मेरी बातों से सहमत हो?

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