क्षमता-समता-ममता ...….…...…..….........(पितृ दिवस पर विशेष)

बाबाजी ओ मेरे बाबाजी,
सौ सौ लाड़ लड़ाते बाबाजी,
हमको छाया देने
कड़ी धूप में घूमे बाबाजी,
बाहर सिर झुकाए,
बांस की झिड़की भी सुने,
पर शाम को टांफिया भर लाये,
झूला झूलाते बाबाजी।
महिनों पुराने कपड़े पहनते,
जुते में भी मोची की मरम्मत दिखती,
पर हम सबको बाजार ले जाये,
नये कपड़ों से सजाये,
ऐसे ही होते है बाबाजी।
मां की ममता को हम पहचाने,
पर बाबा की कड़ी मेहनत को भूले,
उनके स्नेह पर सवाल उठाये,
उनके त्याग को अनदेखा करे!
पापा ही तो भरते हैं मां में आभा,
पापा का साथ पाकर ही मां
हम सबको प्यार से पाले।
हम सबकी खातिर पपा
कड़ी मेहनत करे,
हमारे सभी सपनों को पूरा करते,
असली हीरो वह, 
बेटी को भी विदा करते ,
पर अपने हर आंसू छिपाते,
हर कठिनाई को हंसते हंसते अकेले झेले।
उनके कपडों में-जूतों में-छतरी में
होते जाते कई सुराख,
पर हम सबको मोबाईल-कम्प्युटर के 
संग दिलाते हमारी मनपसंद  चीजें,
खुद की इच्छाओं को भूले।
वह बूढे़ होते जाते-हम युवा,
फिर क्यों उनको भूलते?
उनके त्याग को अनदेखा करते?
आओ उनकी इच्छाओं को पुरा करें,
उन्हें सन्मान दें, 
वह दिन तो नहीं लौटा सकते, 
पर अब उनका हर पल 
खुशियों से-आनंद से भर दें,
अपना प्यार जताये।
धन्यवाद पापा ,
आपके हर त्याग को
नमन बाबा-नमन पापा
शत शत नमन ।

डॉ मंजू लोढ़ा-स्वरचित

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