दीपों का ये त्यौहार पावन, पाप पर पुण्य की जीत,
अधर्म पे धर्म की जय हो, जग में फैले नई प्रीत।
अमावस की इस अंधियारी में, पूनम भी शर्माए,
हर कोने में दीपक जलकर, जग को ज्योति दिखाए।
छोटा सा दीपक देता संदेश — “मैं अंधकार मिटा दूं”,
रविंद्रनाथ की वाणी कहे — “अंधियारे में भी पूनम बना दूं।”
घी के दीप घर भीतर जलें, तेल के दीप दुआर,
मूंग डालकर सौभाग्य जगाएं, मिट जाए सब अंधकार।
मां लक्ष्मी का स्वागत करें, नीति से कमाए धन,
किसी का दिल दुखा न हो, यही सच्चा पूजन-वचन।
धनतेरस लाए शुभ संकेत,
सिक्कों संग समृद्धि का मीत।
चांदी के बर्तन, उज्ज्वल मन,
यही है शुभता की रीत।
रूप चौदस की भोर कहे,
“सुंदरता बाहर ही नहीं मन में रहे।”
उबटन से तन-मन को नहलाओ,
अंतर की मलिनता भी धो जाओ।
इस दिन यमराज के नाम का,
एक दीप जलाना न भूलो,
दीर्घायु और मंगल की कामना में,
प्रकाश की यह लौ अनमोल खोलो।
दीपावली की पावन रात,
घरों में फैले प्रकाश अपरंपार,
कहती लक्ष्मी — “स्वच्छ करो मन,
तभी आऊं मैं साकार।”
नववर्ष की सुबह सुनहरी,
नया संदेश जगाए मन में,
पुराना कचरा त्याग दो,
नव आशा भरो जीवन में।
गौतम स्वामी ने पाया तब,
केवल ज्ञान का गगन उजाला,
दीपों संग बंधा वो पल,
आध्यात्म का बना उजियाला।
और भाई दूज लाए नेह अपार,
भाई-बहन का निर्मल प्यार,
यमराज जब यमी से मिले,
खुशियों से भर गया संसार।
सुदर्शना ने भी बढ़ाया नेह,
नंदी वर्धन को दिया सहारा,
भाई दूज ने सिखाया जग को,
प्यार का ये बंधन न्यारा।
ये पंचमुखी पर्व कहता है —
मन का दीप जलाए रखना,
जब अंधकार घिरे जीवन में,
तो हिम्मत से उजियारा रखना।
दीप बनो, न बुझो कभी तुम,
ज्योति बनो संसार की, प्रेम, नीति, सत्य की राह चलो,
यही है दीपावली संस्कार की।
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